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Book Name:Madani Inamaat,Rahe Nijaat

नींद) से बेदार न हो, तो एक दिन ऐसा भी आता है कि उस का अस्ल सरमाया भी बाक़ी नहीं रहता और वोह कौड़ी कौड़ी का मोह़ताज हो जाता है । बिल्कुल इसी त़रह़ जो शख़्स "कारोबारे आख़िरत" में नफ़्अ़ कमाने का आरज़ू मन्द हो, उसे भी चाहिये कि अपने किये गए आ'माल पर ग़ौर करे, जो आ'माल उस को नफ़्अ़ दिलवाने में मुआविन साबित हों उन को मज़ीद बेहतर करे और जो काम इस नफ़्अ़ के ह़ुसूल में रुकावट बन रहे हों उन्हें छोड़ दे, जो शख़्स इस त़रह़ अपना एह़तिसाब जारी रखेगा, वोह अल्लाह पाक की तौफ़ीक़ से काम्याबी से हम किनार होगा और बत़ौरे नफ़्अ़ اِنْ شَآءَ اللّٰہ उसे दाख़िले जन्नत होना नसीब होगा और अगर ऐसा करने की बजाए ख़्वाबे ग़फ़्लत का शिकार हो जाए, तो वोह ख़सारे में रहेगा जिस का नतीजा दुख़ूले जहन्नम (या'नी जहन्नम में दाख़िले) की सूरत में सामने आ सकता है । (وَالْعِیاذُ بِاللہ عَزَّ  وَجَلَّ)

        शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने आसान और बेहतर अन्दाज़ में फ़िक्रे मदीना (या'नी अपना मुह़ासबा) करने के ह़वाले से हमारी जो रहनुमाई फ़रमाई है, वोह वाके़ई़ क़ाबिले तह़सीन और लाइक़े अ़मल है । आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने इस पुर फ़ितन दौर में आसानी से नेकियां करने और गुनाहों से बचने के त़रीक़ए कार पर मुश्तमिल शरीअ़तो त़रीक़त का जामेअ़ मजमूआ बनाम "मदनी इनआमात" ब सूरते सुवालात अ़त़ा फ़रमाया है । इस्लामी भाइयों के लिये 72, इस्लामी बहनों के लिये 63, त़लबए इ़ल्मे दीन के लिये 92, दीनी त़ालिबात के लिये 83, मदनी मुन्नों और मुन्नियों के लिये 40 और ख़ुसूसी (या'नी गूंगे, बहरे) इस्लामी भाइयों के लिये 27 मदनी इनआमात हैं । मदनी इनआमात का येह अ़ज़ीम तोह़फ़ा न सिर्फ़ अस्लाफ़ رَحِمَہُمُ اللّٰہُ تَعَالٰی की याद दिलाता है बल्कि इन के नक़्शे क़दम पर चलते हुवे फ़िक्रे मदीना करने का बेहतरीन ज़रीआ भी है । इस पर अ़मल पैरा हो कर हम अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश का अ़ज़ीम



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