Faizan e Shabaan

Book Name:Faizan e Shabaan

          दुरूदे पाक सबबे क़बूलिय्यते दुआ है । (فردوس الاخبار، باب الصاد،٢/٢٢،حدیث:٣٥٥٤)  इस के पढ़ने से शफ़ाअ़ते मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ वाजिब हो जाती है ।  (معجم الاوسط،من اسمہ بکر، ٢/ ٢٧٩،حدیث: ٣٢٨٥) मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का बाबे जन्नत पर क़ुर्ब नसीब होगा, दुरूदे पाक तमाम परेशानियों को दूर करने के लिये और तमाम ह़ाजात की तक्मील के लिये काफ़ी है (درمنثور،پ٢٢، الاحزاب، تحت الآیۃ٥٦، ٦/ ٦٥٤، ملخصًا) दुरूदे पाक गुनाहों का कफ़्फ़ारा है । (جلاء الافہام، ص٢٣٤) सदक़े का क़ाइम मक़ाम बल्कि सदके़ से भी अफ़्ज़ल है । (जज़्बुल क़ुलूब, स. 229)

        ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالقَوِی  मज़ीद फ़रमाते हैं : दुरूद शरीफ़ से मुसीबतें टलती हैं, बीमारियों से शिफ़ा ह़ासिल होती है, ख़ौफ़ दूर होता है, ज़ुल्म से नजात ह़ासिल होती है, दुश्मनों पर फ़त्ह़ ह़ासिल होती है, अल्लाह (पाक) की रिज़ा ह़ासिल होती है और दिल

में उस की मह़ब्बत पैदा होती है, फ़िरिश्ते उस का ज़िक्र करते हैं, 'माल की तक्मील होती है, दिलो जान, अस्बाब व माल की पाकीज़गी ह़ासिल होती है, पढ़ने वाला ख़ुश ह़ाल हो जाता है, बरकतें ह़ासिल होती हैं, औलाद दर औलाद चार नस्लों तक बरकत रहती है । (जज़्बुल क़ुलूब, स. 229)

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! ह़ुसूले बरकत, तरक़्क़िये मा'रिफ़त और ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की क़ुर्बत पाने के लिये दुरूदो सलाम की कसरत इन्तिहाई ज़रूरी है, लिहाज़ा हमें चाहिये कि उठते, बैठते, चलते, फिरते ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ाते बा बरकात पर दुरूदे पाक के फूल निछावर करें । बिल ख़ुसूस इस माहे शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म में ज़ियादा से ज़ियादा पढ़ें, दिन में रोज़ा रखें और इस की रातों में क़ियाम का मा'मूल बनाएं क्यूंकि येह मुबारक महीना मेरे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का महीना है । आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ फ़रमाते हैं : شَعْبَانُ شَہْرِیْ وَرَمَضَانُ شَہْرُ اللّٰہِ शा'बान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह तबारक व तआला का महीना है ।

(आक़ा का महीना, स. 2, جامع صغیر،حرف الشین، ص: ٣٠١،حدیث : ٤٨٨٩)