Book Name:Faizan e Shabaan
येह आयते मुबारका सय्यिदुल मुर्सलीन صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की सरीह़ ना'त है जिस में बताया गया कि अल्लाह तआला अपने ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर रह़मत नाज़िल फ़रमाता है और फ़िरिश्ते भी आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के ह़क़ में दुआए रह़मत करते हैं और ऐ मुसलमानो ! तुम भी उन पर दुरूदो सलाम भेजो या'नी रह़मत व सलामती की दुआएं करो । (सिरात़ुल जिनान, 8 / 78)
येह मुबारक महीना शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म हमारे प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का पसन्दीदा और दुरूदे पाक पढ़ने का महीना है ।
ग़ुन्यतुत़्त़ालिबीन में है कि शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म में ख़ैरुल बरिय्या, सय्यिदुल वरा, जनाबे मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर दुरूदे पाक की कसरत की जाती है और येह नबिय्ये मुख़्तार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर दुरूद भेजने का महीना है । (ग़ुन्यतुत़्त़ालिबीन, जि. 1, स. 342) लिहाज़ा इस माहे मुबारक में कसरत से दुरूदे पाक पढ़ना चाहिये ।
आइये ! शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म में दुरूदे पाक की आदत बनाने के लिये मकतबतुल मदीना की मत़बूआ किताब "गुलदस्तए दुरूदो सलाम" के सफ़ह़ा 422 से एक ह़िकायत सुनते हैं ।
शफ़ाअ़त की नवीद
एक आदमी ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर दुरूद शरीफ़ नहीं पढ़ता था, एक रात ख़्वाब में ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुवा । आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने उस की त़रफ़ तवज्जोह न फ़रमाई । उस ने अ़र्ज़ की : ऐ अल्लाह पाक के रसूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! क्या आप मुझ से नाराज़ हैं ? फ़रमाया : नहीं । उस शख़्स ने पूछा : फिर आप मेरी त़रफ़ तवज्जोह क्यूं नहीं फ़रमाते ? फ़रमाया : इस लिये कि मैं तुझे नहीं पहचानता । उस शख़्स ने अ़र्ज़ की : ह़ुज़ूर ! आप मुझे कैसे नहीं पहचानते, मैं तो आप की उम्मत का एक फ़र्द हूं और उ़लमा फ़रमाते हैं कि आप अपने उम्मतियों को इस से भी ज़ियादा पहचानते हैं जैसे कोई बाप अपने बेटे को पहचानता है । आप ने फ़रमाया : उ़लमा ने सच कहा मगर तू मुझे दुरूद शरीफ़ के ज़रीए़ याद नहीं करता और मैं अपनी उम्मत के लोगों को दुरूदे पाक