Book Name:Faizan e Shabaan
फ़रमाया : रोज़े रखा करो क्यूंकि इस जैसा अ़मल कोई नहीं । मैं ने फिर अ़र्ज़ की : मुझे कोई अ़मल बताइये । फ़रमाया : रोज़े रखा करो क्यूंकि इस जैसा कोई अ़मल नहीं । मैं ने फिर अ़र्ज़ की : मुझे कोई अ़मल बताइये । फ़रमाया : रोजे़ रखा करो क्यूंकि इस का कोई मिस्ल नहीं । (फ़ैज़ाने सुन्नत, स. 1338, نسائی ج۴ ص ۱۶۶)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने कि नफ़्ली रोज़ों की आदत बनाने वालों के तो वारे ही नियारे हैं कि अल्लाह पाक उन्हें जहन्नम से 40 साल के फ़ासिले से दूर फ़रमा देता है और अगर उसे ज़मीन के बराबर सोना भी दे दिया जाए तब भी येह उस सवाब को नहीं पहुंच सकता जो उसे रोज़े क़ियामत दिया जाएगा, लिहाज़ा जहन्नम से बचने और आख़िरत में मिलने वाले ढेरों अज्रो सवाब को पाने के लिये फ़र्ज़ रोज़ों के साथ साथ नफ़्ली रोज़ों जैसे रजब, शा'बान, हर पीर शरीफ़ और जुमा'रात का रोज़ा रखने का भी एहतिमाम करना चाहिये ।
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को नफ़्ली रोज़ों से बहुत प्यार है, येही वज्ह है कि आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ साल के ममनूअ़ दिनों के इ़लावा अक्सर रोज़ादार होते हैं, इस के इ़लावा पूरे माहे र-जबुल मुरज्जब और शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म के रोज़े रखने के साथ पीर शरीफ़ का रोज़ा रखने की भी भरपूर तरग़ीब दिलाते हैं । आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की तरग़ीब की बदौलत बहुत से इस्लामी भाई और इस्लामी बहनें र-जबुल मुरज्जब और शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म के पूरे वरना अक्सर दिन रोज़े रखने की सआदत भी ह़ासिल करते हैं और पीर शरीफ़ का रोज़ा रखना तो हमारे मदनी इन्आमात में भी शामिल है । जैसा कि मदनी इन्आम नम्बर 58 है : क्या आप ने इस हफ़्ते पीर शरीफ़ (या रह जाने की सूरत में किसी भी दिन) का रोज़ा रखा ? नीज़ इस हफ़्ते कम अज़ कम एक दिन खाने में जव शरीफ़ की रोटी तनावुल फ़रमाई ?
शा'बान की आमद पर सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان का मा'मूल