Book Name:Faizan e Shabaan
आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इस महीने को बेह़द पसन्द फ़रमाते और कसरत से रोज़े रखा करते । उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदतुना आइशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا फ़रमाती हैं : मेरे सरताज, साह़िबे मे'राज رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا का पसन्दीदा महीना शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म था कि इस में रोज़े रखा करते फिर इसे रमज़ानुल मुबारक से मिला देते । (आक़ा का महीना, स. 5سُنَنِ ابوداو،د ج۲ص۴۷۶حدیث ۲۴۳۱، )
आक़ा शा'बान के अक्सर रोजे़ रखते थे
एक और ह़दीसे पाक में है : रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ शा'बान से ज़ियादा किसी महीने में रोज़े न रखा करते बल्कि पूरे शा'बान ही के रोज़े रख लिया करते थे और फ़रमाया करते : अपनी इस्तित़ाअ़त के मुत़ाबिक़ अ़मल करो कि अल्लाह पाक उस वक़्त तक अपना फ़ज़्ल नहीं रोकता जब तक तुम उकता न जाओ । (صَحیح بُخاری ج۱ص۶۴۸حدیث ۱۹۷۰)
शारेह़े बुख़ारी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मुफ़्ती मुह़म्मद शरीफ़ुल ह़क़ अमजदी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالقَوِی इस ह़दीसे पाक के तह़त फ़रमाते हैं : मुराद येह है कि शा'बान में
अक्सर दिनों में रोज़ा रखते थे, इसे तग़लीबन (या'नी ग़लबे और ज़ियादत के लिह़ाज़ से) कुल (या'नी सारे महीने के रोज़े रखने) से ता'बीर कर दिया । जैसे कहते हैं : फ़ुलां ने पूरी रात इ़बादत की जब कि उस ने रात में खाना भी खाया हो और ज़रूरिय्यात से फ़राग़त भी की हो, यहां तग़लीबन अक्सर को कुल
कह दिया । मज़ीद फ़रमाते हैं : इस ह़दीस से मा'लूम हुवा कि शा'बान में जिसे क़ुव्वत हो, वोह ज़ियादा से ज़ियादा रोज़े रखे, अलबत्ता जो कमज़ोर हो वोह रोज़ा न रखे क्यूंकि इस से रमज़ान के रोज़ों पर असर पड़ेगा, येही मह़मल (या'नी मुराद व मक़्सद) है उन अह़ादीस का जिन में फ़रमाया गया कि निस्फ़ शा'बान के बा'द रोज़ा न रखो ।
(आक़ा का महीना, स. 6, नुज़्हतुल क़ारी, जि. 3, स. 377, 380, ترمذی حدیث ۷۳۸)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने ! हमारे प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इस माहे मुबारक को किस क़दर पसन्द