Book Name:Faizan e Shabaan
उन्हें बहुत अच्छा लगा, लिहाज़ा उन्हों ने पाबन्दी से जाना शुरूअ़ कर दिया, नमाज़ों की पाबन्दी भी शुरूअ़ कर दी और इ़मामा शरीफ़ भी सजा लिया । घर के बा'ज़ अफ़राद ने सख़्ती के साथ मुख़ालफ़त की मगर मदनी माह़ोल की कशिश और आशिक़ाने रसूल का ह़ुस्ने सुलूक उन्हें दा'वते इस्लामी से मज़ीद क़रीब तर करता चला गया । मकतबतुल मदीना से जारी होने वाले सुन्नतों भरे बयानात की केसेटें सुनने से ढारस बंधी और ह़ौसला मिलता गया । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ عَزَّ وَجَلَّ आहिस्ता आहिस्ता उन के घर के अन्दर भी मदनी माह़ोल बन गया ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! शबे बराअत वोह मुबारक रात है जिस में अल्लाह पाक की रह़मतें अपने बन्दों पर छमाछम बरसती हैं, इस लिये इस मुक़द्दस रात में ज़ियादा से ज़ियादा इ़बादतो रियाज़त का एहतिमाम, गुनाहों से बचने का इन्तिज़ाम और कसरते दुरूदो सलाम के ज़रीए़ अल्लाह पाक की बारगाह से कसीर इन्आमो इकराम ह़ासिल करना चाहिये । पहले के मदनी सोच रखने वाले मुसलमान इन मुतबर्रक अय्याम में अल्लाह पाक की ज़ियादा से ज़ियादा इ़बादत कर के उस का क़ुर्ब ह़ासिल करने की कोशिश करते थे मगर आज मुसलमानों को न जाने क्या हो गया है कि इन मुबारक अय्याम की क़द्र नहीं करते और अपना क़ीमती वक़्त मसाजिद में गुज़ारने या इजतिमाए़ ज़िक्रो ना'त में शिर्कत करने के बजाए फ़ुज़ूलिय्यात में बरबाद कर देते हैं, ह़ालांकि इस रात अल्लाह पाक ख़ास तजल्ली फ़रमाता है और अपने बे शुमार बन्दों की बख़्शिश व मग़फ़िरत फ़रमाता है ।
शबे बराअत बख़्शिश की रात
अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़लिय्युल मुर्तज़ा, शेरे ख़ुदा کَرَّمَ اللّٰہُ تَعَالٰی وَجْھَہُ الْکَرِیْم से मरवी है कि नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम عَلَیْہِ اَفْضَلُ الصَّلٰوۃِ وَ التَّسْلِیم का फ़रमाने अ़ज़ीम है : जब पन्द्रह शा'बान की रात आए, तो उस में क़ियाम (या'नी इ़बादत) करो और दिन में रोज़ा रखो, बेशक अल्लाह तआला ग़ुरूबे आफ़्ताब से आसमाने दुन्या पर ख़ास तजल्ली फ़रमाता और कहता है : है कोई मुझ से