Faizan e Shabaan

Book Name:Faizan e Shabaan

मग़फ़िरत त़लब करने वाला कि उसे बख़्श दूं ! है कोई रोज़ी त़लब करने वाला कि उसे रोज़ी दूं ! है कोई मुसीबत ज़दा कि उसे आफ़िय्यत अ़त़ा करूं ! है कोई ऐसा ! है कोई ऐसा ! और येह उस वक़्त तक फ़रमाता है कि फ़ज्र त़ुलूअ़ हो जाए । (आक़ा का महीना, स. 14, سُنَنِ اِبن ماجہ ج۲ص۱۶۰حدیث ۱۳۸۸ دارا لمعرفۃ بیروت)

        अफ़्सोस ! सद अफ़्सोस ! बा'ज़ नादान मुसलमान इस रात का एह़तिराम करना तो दूर की बात बल्कि जो मुसलमान बीमार, बूढ़े या बच्चे घरों में मह़वे आराम या ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ के साथ रब तआला की बारगाह में ह़ाज़िर हो कर इ़बादत में मश्ग़ूल होते हैं, उन्हें आतश बाज़ी के ज़रीए़ तक्लीफ़ पहुंचाते और उन की इ़बादत में ख़लल का सबब बनते हैं ।

          याद रखिये ! मुसलमानों को सताना, उन का दिल दुखाना और उन्हें त़रह़ त़रह़ से अज़िय्यतें (या'नी तक्लीफ़ें) पहुंचाना येह सब नाजाइज़ व ह़राम और जहन्नम में ले जाने वाले काम हैं । ज़रा सोचिये ! इस मुबारक रात में जब सब की मग़फ़िरत हो रही हो, तो हमारी इन्ही नापाक ह़रकतों की वज्ह से हमारी बख़्शिश को रोक दिया जाए, तो उस वक़्त हमारा क्या बनेगा ? इस लिये अगर हम से दानिस्ता या गै़र दानिस्ता त़ौर पर किसी मुसलमान की दिल आज़ारी हुई या किसी का ह़क़ तलफ़ कर दिया या किसी के लिये अपने दिल में दुश्मनी बिठा ली है, तो शबे बराअत आने से पहले पहले मुआफ़ी तलाफ़ी कर लीजिये और आइन्दा इन गुनाहों से बाज़ रहने की निय्यत भी फ़रमा लीजिये क्यूंकि ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं, क्या ख़बर इसी साल हमारी मौत वाके़अ़ हो जाए और हम ग़फ़्लत में ही पड़े रहें । लिहाज़ा जल्द अज़ जल्द अपने ह़ुक़ूक़ मुआफ़ करवा लीजिये और आतश बाज़ी के ज़रीए़ इ़बादत गुज़ारों, बीमारों और शीर ख़्वारों को तक्लीफ़ पहुंचाने से तौबा कर लीजिये ।

          याद रखिये ! आतश बाज़ी मुसलमानों की नहीं बल्कि गै़र मुस्लिमों की ईजाद है । चुनान्चे, ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالرَّحْمٰن  फ़रमाते हैं : आतश बाज़ी नमरूद बादशाह ने ईजाद की जब कि उस ने ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम ख़लीलुल्लाह عَلٰی نَبِیِّنَا وَ عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام को आग में डाला