Book Name:Esal-e-Sawab Ki Barakaten
इस से मय्यित को दोहरी (या'नी डबल) ख़ुशी होती है, एक सवाब पहुंचने की, दूसरी उस के दोस्तों, प्यारों की इमदाद होने की ।
(मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 496)
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! मा'लूम हुवा ! ज़िन्दों का मुर्दों बल्कि जो लोग पैदा ही नहीं हुवे उन को भी सवाब पहुंचाना न सिर्फ़ जाइज़ बल्कि सुन्नत से साबित है । येह भी मा'लूम हुवा ! खाना वग़ैरा सामने रख कर सवाब पहुंचाना भी जाइज़ अ़मल है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने सह़ाबा व अहले बैत ! याद रखिये ! सवाब पहुंचाने का येह सिलसिला सिर्फ़ सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ात तक ही मह़दूद नहीं बल्कि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के सह़ाबए किराम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ اَجْمَعِیْن भी फ़ौत शुदा मुसलमानों को सवाब पहुंचाने के मुख़्तलिफ़ अन्दाज़ अपनाया करते थे । चुनान्चे, ह़ज़रते अ़ल्लामा जलालुद्दीन सुयूत़ी शाफे़ई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ नक़्ल फ़रमाते हैं : सह़ाबए किराम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ اَجْمَعِیْن सात रोज़ तक मुर्दों की त़रफ़ से खाना खिलाया करते थे । (الحاوی للفتاوی، ۲/۲۲۳)
ह़ज़रते सय्यिदुना सा'द बिन उ़बादा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की वालिदा साह़िबा का इन्तिक़ाल हुवा, तो उन्हों ने बारगाहे रिसालत में ह़ाज़िर हो कर अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! मेरी वालिदए मोह़्तरमा का मेरी ग़ैर मौजूदगी में इन्तिक़ाल हो गया है, अगर मैं उन की त़रफ़ से कुछ सदक़ा करूं, तो क्या उन्हें कोई फ़ाइदा पहुंच सकता है ? इरशाद फ़रमाया : हां । अ़र्ज़ की : तो मैं आप को गवाह बना कर कहता हूं कि मेरा बाग़ उन की त़रफ़ से सदक़ा है ।
( بُخاری، ۲/۲۴۱،حدیث:۲۷۶۲)
एक रिवायत में है : ह़ज़रते सय्यिदुना सा'द رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने बारगाहे रिसालत में अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! सा'द की मां का इन्तिक़ाल हो गया है (मैं सवाब पहुंचाने के लिये कुछ सदक़ा करना चाहता हूं ।