Esal-e-Sawab Ki Barakaten

Book Name:Esal-e-Sawab Ki Barakaten

मदनी फूल : नेक और जाइज़ काम में जितनी अच्छी निय्यतें ज़ियादा, उतना सवाब भी ज़ियादा ।

बयान सुनने की निय्यतें

  ٭ निगाहें नीची किये ख़ूब कान लगा कर बयान सुनूंगा । ٭ टेक लगा कर बैठने के बजाए इ़ल्मे दीन की ता'ज़ीम के लिये जहां तक हो सका दो ज़ानू बैठूंगा । ٭ اُذْکُرُوااللّٰـہَ، تُوبُوْا اِلَی اللّٰـہِ  صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْبِ، वग़ैरा सुन कर सवाब कमाने और सदा लगाने वालों की दिलजूई के लिये बुलन्द आवाज़ से जवाब दूंगा । ٭ बयान के बा'द ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ईसाले सवाब के लफ़्ज़ी मा'ना हैं : सवाब पहुंचाना, इस को सवाब बख़्शना भी कहते हैं मगर बुज़ुर्गों के लिये "सवाब बख़्शना" कहना मुनासिब नहीं, "सवाब नज़्र करना" कहना अदब के ज़ियादा क़रीब है । आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ुज़ूरे अक़्दस عَلَیْہِ اَفْضَلُ الصَّلٰوۃِ  وَ التَّسْلِیم ख़्वाह और नबी या वली को सवाब बख़्शना कहना बे अदबी है, बख़्शना बड़े की त़रफ़ से छोटे को होता है बल्कि नज़्र करना या हदिय्या करना कहे । (फ़तावा रज़विय्या, 26 / 609)

सवाब पहुंचाने के 4 त़रीके़

        मलिकुल उ़लमा, ह़ज़रते अ़ल्लामा ज़फ़रुद्दीन बिहारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ईसाले सवाब (सवाब पहुंचाने) के चार त़रीके़ हैं । (1) दुआ़ए मग़फ़िरत । (2) दुआ़ए रह़मत । (3) नमाज़े जनाज़ा । (4) क़ब्र पर ठहरना और दुआ़ करना । (दौरे सह़ाबा में ईसाले सवाब की मुख़्तलिफ़ सूरतें, स. 45)

क़ुरआने करीम से सवाब पहुंचाने का सुबूत

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! क़ुरआने करीम में सवाब पहुंचाने का एक त़रीक़ा या'नी मोमिनीन के लिये दुआ़ए मग़फ़िरत करने का सुबूत वाज़ेह़ त़ौर पर मौजूद