Book Name:Esal-e-Sawab Ki Barakaten
दूसरे को पहुंचाना जाइज़ है । इ़बादते मालिय्या (हो) या बदनिय्या (माली इ़बादत जैसे सदक़ा व ख़ैरात और बदनी इ़बादत जैसे नमाज़, रोज़ा वग़ैरा), फ़र्ज़ व नफ़्ल सब का सवाब दूसरों को पहुंचाया जा सकता है क्यूंकि ज़िन्दों के ईसाले सवाब (सवाब पहुंचाने) से मुर्दों को फ़ाइदा पहुंचता है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 642)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! इन्सान जब तक दुन्या में रहता है, तो उस के आस पास उस के मां-बाप, बहन, भाई, बीवी, बच्चे, रिश्तेदार और दोस्त वग़ैरा मौजूद होते हैं जो उस के दुख, दर्द और आज़माइशों में उस के साथ साथ रहते और उस का ग़म हल्का करने की कोशिश करते हैं, बीमार हों, तो इ़यादत भी करते हैं मगर जब येही इन्सान अन्धेरी क़ब्र में जा पहुंचता है, तो वहां उस के मां-बाप, बहन भाई, रिश्तेदार और दोस्त वग़ैरा में से कोई भी नहीं होता बल्कि वोह क़ब्र में अकेला ही होता है । क़ब्र में जाने के बा'द उस पर जो गुज़रती है उस का ह़ाल तो वोह ख़ुद ही बेहतर जानता है । क़ब्र की ह़क़ीक़त बयान करते हुवे रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इरशाद फ़रमाते हैं : اَلْقَبْرُ رَوْضَةٌ مِنْ رِيَاضِ الْجَنَّةِ، اَوْ حُفْرَةٌ مِنْ حُفَرِ النَّار बेशक क़ब्र जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ या दोज़ख़ के गढ़ों में से एक गढ़ा है । (ترمذی،۴/۲۰۸، حدیث:۲۴۶۸)
अब जो क़ब्र में मौजूद है, तो हमें उस के बारे में मा'लूम नहीं कि क़ब्र उस के लिये जन्नत का बाग़ (Garden) साबित हुई होगी या مَعَاذَ اللّٰہ दोज़ख़ का गढ़ा बनी होगी लेकिन हमें एक मुसलमान के साथ खै़र ख़्वाही का जज़्बा रखते हुवे उस को सवाब पहुंचाने की आ़दत बनानी चाहिये ।
अह़ादीसे मुबारका से सवाब पहुंचाने का सुबूत
उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदतुना आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا से रिवायत है, रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने ह़ुक्म फ़रमाया : सींग वाला मेन्ढा लाया जाए जो सियाही में चलता हो, सियाही में बैठता हो और सियाही में देखता हो (या'नी उस के पाउं, पेट और आंखें काले रंग की हों) वोह क़ुरबानी के