Book Name:Esal-e-Sawab Ki Barakaten
जल्द अज़ जल्द नियाज़, तीजा, दसवां, चालीसवां वग़ैरा से याद करते हैं । ज़िन्दों को चाहिये कि मुर्दों को अपनी दुआ़ओं वग़ैरा में याद रखें ताकि कल इन्हें दूसरे मुसलमान याद करें । (मिरआतुल मनाजीह़, 3 / 373 ता 374, मुलख़्ख़सन)
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! ज़िन्दा लोगों का सवाब पहुंचाना, फ़ौत शुदा मुसलमानों को तह़ाइफ़ की सूरत में पेश किया जाता है । आइये ! इस तअ़ल्लुक़ से ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत सुनिये ।
रेश्मी रूमालों से ढके हुवे तोह़्फे़
ह़ज़रते सय्यिदुना बश्शार बिन ग़ालिब رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं ह़ज़रते सय्यिदतुना राबिआ़ बसरिय्या رَحْمَۃُ اللہِ عَلَیْہَا के लिये बहुत दुआ़एं किया करता था । एक रात मैं ने उन्हें ख़्वाब में देखा, वोह फ़रमा रही थीं : ऐ बश्शार ! तुम्हारे तोह़्फे़ मुझे नूर के थालों में रेश्मी रूमालों से ढक कर पहुंचाए जाते हैं, जब ज़िन्दा लोग फ़ौत शुदा लोगों के लिये दुआ़ करते हैं, तो उन के साथ ऐसा ही होता है, उन्हें क़बूल कर के नूर के थालों में रखा जाता है फिर रेश्मी रूमालों से ढक कर उस मय्यित को पेश किया जाता है जिस के लिये दुआ़ की गई हो और कहा जाता है : फ़ुलां ने तेरी त़रफ़ येह तोह़्फ़ा भेजा है । (التذکرۃ ،باب مایتبع المیت الی قبرہ ،ص۸۶)
سُبْحٰنَ اللّٰہ ! अल्लाह पाक किस क़दर मेहरबान है कि दुन्या में तो अपने बन्दों पर फ़ज़्लो करम की बारिशें फ़रमाता ही है मगर जब कोई मुसलमान फ़ौत हो जाए, तो ज़िन्दा लोगों की दुआ़ओं और सवाब पहुंचाने की बरकत से फ़ौत शुदा मुसलमानों को सुकून व इत़मीनान की दौलत बख़्शता है । येह भी मा'लूम हुवा ! सवाब पहुंचाने वालों से रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ भी बहुत ख़ुश होते और ख़ुश ख़बरियों से नवाज़ते हैं ।
याद रखिये ! किसी फ़ौत शुदा मुसलमान को सवाब पहुंचाना ब ज़ाहिर थोड़ा अ़मल है मगर इस की बरकतें बहुत ही ज़ियादा हैं मगर अफ़्सोस ! अब हम दुन्यवी कामों में इस क़दर मश्ग़ूल हो गए हैं कि हमारे पास अपने फ़ौत शुदा मुसलमानों को सवाब पहुंचाने या उन की क़ब्र पर जा कर फ़ातिह़ा वग़ैरा पढ़ने