Book Name:Esal-e-Sawab Ki Barakaten
(बहारे शरीअ़त, 2 / 521)) तो कौन सा सदक़ा अफ़्ज़ल है ? फ़रमाया : पानी (कि पानी की वहां कमी थी और उस की ज़ियादा ह़ाजत थी । (बहारे शरीअ़त, 2 / 522)) । तो उन्हों ने कुंवां खुदवाया और कहा : هَذِهِ لِاُمِّ سَعْدٍ येह कुंवां सा'द की मां के लिये (या'नी उन की रूह़ को सवाब पहुंचाने के लिये) है ।
(ابوداود،کتاب الزکاۃ،باب في فضل سقی الماء،۲/ ۱۸۰،حدیث:۱۶۸۱)
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : (मय्यित) की त़रफ़ से पानी की ख़ैरात करो क्यूंकि पानी से दीनी (और) दुन्यवी मनाफे़अ़ (फ़ाइदे) ह़ासिल होते हैं, ख़ुसूसन उन गर्म व ख़ुश्क अ़लाक़ों में जहां पानी की कमी हो । बा'ज़ लोग सबीलें लगाते हैं, आ़म मुसलमान ख़त्म, फ़ातिह़ा वग़ैरा में दूसरी चीज़ों के साथ पानी भी रख देते हैं, इन सब का माख़ज़ (या'नी इन की अस्ल) येह ह़दीस है । इस से मा'लूम हुवा कि पानी की ख़ैरात (सदक़ा करना) बेहतर है ।
(मिरआतुल मनाजीह़, 3 / 104 ता 105, मुलख़्ख़सन)
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपने रिसाले "फ़ातिह़ा और ईसाले सवाब का त़रीक़ा" सफ़ह़ा नम्बर 11 पर फ़रमाते हैं : मा'लूम हुवा ! मुसलमानों का बकरे वग़ैरा को बुज़ुर्गों की त़रफ़ मन्सूब करना, मसलन येह कहना कि "येह सय्यिदुना ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का बकरा है" इस में कोई ह़रज नहीं कि इस से मुराद भी येही है कि येह बकरा ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को सवाब पहुंचाने के लिये है । क़ुरबानी के जानवर को भी तो लोग एक दूसरे ही की त़रफ़ मन्सूब करते हैं, मसलन कोई अपनी क़ुरबानी का बकरा लिये चला आ रहा हो और अगर आप उस से पूछें कि किस का बकरा है ? तो वोह कुछ इस त़रह़ जवाब देता है : "मेरा बकरा है" या "मेरे मामूं का बकरा है ।" जब येह कहने वाले पर ए'तिराज़ नहीं, तो "ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का बकरा" कहने वाले पर भी कोई ए'तिराज़ नहीं हो सकता । ह़क़ीक़त में हर चीज़ का मालिक अल्लाह पाक ही है और क़ुरबानी का बकरा हो या ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का