Book Name:Allah Pak Say Muhabbat Karnay Walon Kay Waq'eaat
मह़ब्बते इलाही की 7 अ़लामतें
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइये ! दिल में मह़ब्बते इलाही बढ़ाने के लिये क़ुरआनो ह़दीस और अक़्वाले बुज़ुर्गाने दीन की रौशनी में "मह़ब्बते इलाही" की 7 निशानियां सुनती हैं ।
1. मह़ब्बते इलाही की एक निशानी क़ुरआने करीम की तिलावत करना और उस का तर्जमा व तफ़्सीर पढ़ना, समझना, मह़ब्बते इलाही की अ़लामत है । अल्लाह पाक के नेक बन्दे जब उस का कलाम सुनते हैं और उस में ग़ौरो फ़िक्र करते हैं, तो उन की आंखों से आंसू जारी हो जाते हैं । चुनान्चे, पारह 7, सूरतुल माइदह की आयत नम्बर 83 में इरशादे बारी है :
وَ اِذَا سَمِعُوْا مَاۤ اُنْزِلَ اِلَى الرَّسُوْلِ تَرٰۤى اَعْیُنَهُمْ تَفِیْضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُوْا مِنَ الْحَقِّۚ-(پ:۷،المائدۃ:۸۳)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और जब येह सुनते हैं वोह जो रसूल की त़रफ़ नाज़िल किया गया, तो तुम देखोगे कि उन की आंखें आंसूओं से उबल पड़ती हैं इस लिये कि वोह ह़क़ को पहचान गए ।
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "मुकाशफ़तुल क़ुलूब" सफ़ह़ा नम्बर 63 पर लिखा है : मह़ब्बत का सच्चा होना तीन चीज़ों से ज़ाहिर होता है । (1) मह़ब्बत करने वाला, मह़बूब की बातों को सब की बातों से अच्छा समझता हो । (2) उस की मह़फ़िल को तमाम की मह़ाफ़िल से बेहतर समझता हो और (3) उस की रिज़ा को, औरों की रिज़ा पर तरजीह़ देता हो । (मुकाशफ़तुल क़ुलूब, स. 63, मुलख़्ख़सन)
ह़ज़रते सय्यिदुना सहल बिन अ़ब्दुल्लाह तुस्तरी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक से मह़ब्बत, क़ुरआने पाक से मह़ब्बत करना है । अल्लाह पाक और क़ुरआने करीम से मह़ब्बत की निशानी रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की सुन्नत से मह़ब्बत करना है और सुन्नत से मह़ब्बत की निशानी, आख़िरत से मह़ब्बत करना है । (मुकाशफ़तुल क़ुलूब, स. 71)