Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

          मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ने अपनी ज़िन्दगियां मुसलमानों की इस्लाह़ की कोशिश करते हुवे गुज़ार दीं, बा'ज़ ने अपनी पुर असर तह़रीरों के ज़रीए़, बा'ज़ ने तक़रीरों के ज़रीए़ और बा'ज़ ने दोनों त़रीक़ों से मुसलमानों की इस्लाह़ का मुक़द्दस काम सर अन्जाम दिया, जिन से मुतअस्सिर हो कर ग़ैर मुस्लिमों को ईमान की दौलत जब कि बे शुमार गुनाहगारों को सच्ची तौबा की तौफ़ीक़ नसीब हो जाती है । आइये ! इस की एक ईमान अफ़रोज़ झलक मुलाह़ज़ा कीजिये । चुनान्चे,

उ़त्बा का अ़जीब वाक़िआ़

          दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "मुकाशफ़तुल क़ुलूब" सफ़ह़ा नम्बर 67 पर है : उ़त्बतुल ग़ुलाम (तौबा से पहले उन) की बुराइयों और शराब नोशी की दास्तानें मश्हूर थीं, एक दिन ह़ज़रते (सय्यिदुना) ह़सन बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की मजलिस में आए, उस वक़्त ह़ज़रते (सय्यिदुना) ह़सन (बसरी) رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ (पारह 27, सूरतुल ह़दीद, आयत नम्बर 16 की) तफ़्सीर बयान कर रहे थे :

(پ۲۷،الحدید:۱۶) اَلَمْ یَاْنِ لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَنْ تَخْشَعَ قُلُوْبُهُمْ لِذِكْرِ اللّٰهِ

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : क्या ईमान वालों के लिये अभी वोह वक़्त नहीं आया कि उन के दिल अल्लाह की याद और उस ह़क़ के लिये झुक जाएं ।

          आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) ने इस आयत की ऐसी तफ़्सीर बयान की, कि लोग रोने लगे । एक जवान मजलिस में खड़ा हो गया और कहने लगा : ऐ बन्दए मोमिन ! क्या मुझ जैसा गुनाहगार भी अगर तौबा कर ले, तो अल्लाह पाक क़बूल फ़रमाएगा ? आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) ने फ़रमाया : हां ! अल्लाह पाक तेरे गुनाहों को (भी) मुआ़फ़ कर देगा । जब उ़त्बतुल ग़ुलाम ने येह बात सुनी, तो उन का चेहरा पीला पड़ गया और कांपते हुवे चीख़ मार कर बेहोश हो गए । जब