Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
एक बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ बग़दाद शरीफ़ के किसी अ़लाके़ से गुज़र रहे थे, उन्हों ने एक नौजवान को देखा जो अच्छे त़रीके़ से वुज़ू नहीं कर रहा था । तो प्यार भरे अन्दाज़ में उस से फ़रमाया : ऐ नौजवान ! वुज़ू ठीक त़रीक़े से कीजिये ! अल्लाह पाक दुन्या व आख़िरत में आप पर एह़सान फ़रमाए । येह फ़रमा कर वोह तशरीफ़ ले गए । वोह नौजवान उन बुज़ुर्ग की नेकी की दा'वत देने के मीठे मीठे अन्दाज़ से बेह़द मुतअस्सिर हुवा और वुज़ू के बा'द उन बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ख़िदमत में ह़ाज़िर हो कर नसीह़त त़लब करने लगा । उन्हों ने (नेकी की दा'वत देते हुवे) तीन मदनी फूल इरशाद फ़रमाए : (1) जान लीजिये ! जिस ने रब्बे करीम को पहचान लिया, वोह नजात पा गया । (2) जो अपने दीन के मुआ़मले में अल्लाह पाक से डरा, वोह तबाही से बच गया । (3) जिस ने दुन्या में बे रग़बती को इख़्तियार किया, वोह अल्लाह पाक की त़रफ़ से जब बरोज़े क़ियामत इस का सवाब देखेगा, तो उस की आंखें ठन्डी होंगी । (फिर फ़रमाया) : क्या कुछ मज़ीद न बताऊं ? अ़र्ज़ की : ज़रूर इरशाद हो । फ़रमाया : जिस में तीन ख़ूबियां जम्अ़ हो गईं, उस का ईमान मुकम्मल हो गया । (1) जो नेकी का ह़ुक्म दे और ख़ुद भी उस पर अ़मल करे । (2) जो बुराई से मन्अ़ करे और ख़ुद भी उस से बाज़ रहे और (3) जो ह़ुदूदे इलाही की ह़िफ़ाज़त करे (या'नी शरई़ अह़कामात बजा लाए और शरई़ ममनूआ़त से ख़ुद को बचाए) । फिर फ़रमाया : क्या कुछ और भी बताऊं ? अ़र्ज़ की : क्यूं नहीं ! ज़रूर इरशाद फ़रमाइये । फ़रमाया : दुन्या से बे रग़बत और आख़िरत का शौक़ रखने वाले हो जाइये और अपने हर काम में अल्लाह पाक से सच का मुआ़मला कीजिये, नजात पाने वालों के साथ नजात पा जाएंगे । येह फ़रमा कर वोह तशरीफ़ ले गए । उस