Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat
आइये ! एक रिक़्क़त अंगेज़ ह़िकायत सुनती हैं और उस से मदनी फूल चुनती हैं । चुनान्चे,
नेकी की दा'वत देते हुवे ख़ौफे़ ख़ुदा से रो पड़े
ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम बिन बश्शार رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं और इमाम अबू यूसुफ़ फ़सवी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मुल्के शाम की त़रफ़ जा रहे थे, रास्ते में एक शख़्स आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के सामने आया और सलाम करने के बा'द अ़र्ज़ करने लगा : ऐ अबू यूसुफ़ ! मुझे कुछ नसीह़त फ़रमाइये । येह सुन कर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ रो पड़े और (नेकी की दा'वत पेश करते हुवे) फ़रमाया : ऐ भाई ! बेशक दिन व रात का (जल्दी जल्दी) आना, जाना आप के बदन के घुलने, उ़म्र के ख़त्म होने और हर लम्ह़ा मौत के क़रीब से क़रीब तर होते चले जाने का पता दे रहा है । इस लिये मेरे भाई ! आप को उस वक़्त तक हरगिज़ मुत़मइन हो कर नहीं बैठना चाहिये जब तक कि अपने अच्छे ख़ातिमे का मा'लूम न हो जाए और येह पता न चल जाए कि जन्नत में जाना है या مَعَاذَ اللّٰہ जहन्नम ठिकाना है ? और येह ख़बर न हो जाए कि अल्लाह पाक आप के गुनाहों और ग़फ़्लतों की वज्ह से नाराज़ है या अपने फ़ज़्लो रह़मत के सबब आप से राज़ी है । ऐ कमज़ोर इन्सान ! अपनी औक़ात मत भूलिये ! आप का आग़ाज़ एक नापाक क़त़रा है जब कि अन्जाम सड़ा हुवा मुर्दा, अगर अभी येह नसीह़त समझ नहीं भी आ रही, तो अ़न क़रीब समझ में आ जाएगी, जिस वक़्त आप क़ब्र में जाएंगे, वहां गुनाहों पर शर्मिन्दगी तो होगी मगर काम न देगी । येह फ़रमा कर इमाम अबू यूसुफ़ फ़सवी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ रोने लगे और वोह शख़्स भी रोने लगा । इस वाक़िए़ को रिवायत करने वाले बुज़ुर्ग फ़रमाते हैं : उन दोनों को रोता देख कर मैं भी रोने लगा, यहां तक कि वोह दोनों बेहोश हो कर गिर गए । ذم الھوی،الباب الخمسون فیہ وصایا …الخ، ص۴۳۷ ملخصاً))
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! इस ह़िकायत में हमारे लिये नसीह़त के बहुत से मदनी फूल मौजूद हैं, मसलन मुबल्लिग़ा को चाहिये कि जब उसे इनफ़िरादी या इजतिमाई़ सूरत में इस्लामी बहनों की इस्लाह़ की कोशिश करने