Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

की सआ़दत नसीब हो, तो ख़ुद को मुत्तक़िया व परहेज़गार और इस्लाह़ से आज़ाद समझने के बजाए येह समझे कि दर ह़क़ीक़त येह नसीह़त मैं अपने आप को कर रही हूं ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के फै़ज़ान से माला माल आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी इस्लाह़े उम्मत के लिये अपनी कोशिशें जारी रखे हुवे है । इस तह़रीक से वाबस्ता बा'ज़ मुबल्लिग़ात इस अ़ज़ीम सुन्नत पर अ़मल करते हुवे आंसू बरसाती आंखों और आ़जिज़ी व इन्केसारी के साथ नेकी की दा'वत दे कर बिगड़ी हुई इस्लामी बहनों की इस्लाह़ की कोशिश का सामान करती हैं । यक़ीनन इन जैसी मुख़्लिस मुबल्लिग़ात की इनफ़िरादी व इजतिमाई़ कोशिशों का ही तो सदक़ा है कि आज मुआ़शरे में सुन्नतों की मदनी बहारें आ़म हैं, कल तक जो बद अ़क़ीदा थीं, वालिदैन की ना फ़रमान थीं, फै़शन की शौक़ीन थीं, गाने बाजों के दिल दादह थीं और इ़श्के़ मजाज़ी की आफ़त में गिरिफ़्तार थीं, अल ग़रज़ ! त़रह़ त़रह़ के गुनाहों की दलदल में धंसी हुई थीं मगर जब इस्लाह़े उम्मत का दर्द रखने वाली मुख़्लिस मुबल्लिग़ाते दा'वते इस्लामी ने ख़ौफे़ ख़ुदा में डूब कर उन्हें फ़िक्रे आख़िरत पर मुश्तमिल नेकी की दा'वत पेश की, तो उन के दिल नर्म पड़ गए और वोह भी दा'वते इस्लामी से वाबस्ता हो कर सुन्नतों की धूमें मचाने वाली बन गईं । लिहाज़ा हमें चाहिये कि हम भी इस अ़ज़ीम नेकी के लिये ख़ुद को ज़ेहनी त़ौर पर तय्यार करें ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ मुसलमानों की इस्लाह़ की ख़ात़िर उन्हें नेकी की दा'वत देना वोह अ़ज़ीमुश्शान काम है कि रब्बे करीम ने अपने पाकीज़ा कलाम में इस अहम काम को अन्जाम देने वालों की ता'रीफ़ भी फ़रमाई है । चुनान्चे, पारह 24, सूरए حٰم السَّجدۃ की आयत नम्बर 33 में इरशादे रब्बानी है :

وَ مَنْ اَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّنْ دَعَاۤ اِلَى اللّٰهِ وَ عَمِلَ صَالِحًا وَّ قَالَ اِنَّنِیْ مِنَ