Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat
करने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक "दा'वते इस्लामी" की बुन्याद रखी, अल ग़रज़ ! इन मुक़द्दस हस्तियों ने बयान व तदरीस, तस्नीफ़ो तालीफ़ और नेकी की दा'वत वग़ैरा के ज़रीए़ इस्लाह़े उम्मत का अ़ज़ीम काम जारी रखा । तो आइये ! आज हम बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के इस्लाह़े उम्मत के जज़्बे से मा'मूर चन्द ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़त सुनती हैं ।
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने अपनी अ़ज़ीमुश्शान किताब फै़ज़ाने सुन्नत, जिल्द दुवुम के बाब "नेकी की दा'वत" के सफ़ह़ा नम्बर 514 पर एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ नक़्ल फ़रमाया है । आइये ! हम भी वोह वाक़िआ़ सुनती हैं और उस से ह़ासिल होने वाले मदनी फूलों से अपने दिल के मदनी गुलदस्ते को सजाने की कोशिश करती हैं । चुनान्चे,
ह़ज़रते सय्यिदुना मुस्अ़ब बिन उ़मैर رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ, ह़ज़रते सय्यिदुना अस्अ़द बिन ज़ुरारा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ के साथ राहे ख़ुदा में सफ़र पर रवाना हुवे, तो क़बीलए बनी ज़फ़र के बाग़ में "मरक़" नामी कुंवें पर जा कर बैठ गए । इन दोनों के पास क़बीलए बनू अस्लम के लोग जम्अ़ हो गए, इन के आ'ला दरजे के सरदार सा'द बिन मुआ़ज़ और उसैद बिन ह़ुज़ैर थे, जो अभी दामने इस्लाम से वाबस्ता न हुवे थे । सा'द बिन मुआ़ज़, ह़ज़रते सय्यिदुना अस्अ़द बिन ज़ुरारा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ के ख़ालाज़ाद भाई थे, सा'द बिन मुआ़ज़ ने उसैद बिन ह़ुज़ैर को भेजा कि जाओ और उन दोनों मुबल्लिग़ीन को डांट कर रोक दो जो कि हमारे कमज़ोर लोगों को مَعَاذَ اللّٰہ बहकाने के लिये आए हैं । चुनान्चे, उसैद बिन ह़ुज़ैर ने अपना नेज़ा लिया और उन के पास पहुंच गए, आते ही उन को बुरा भला कहना