Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat
होश आया, तो ह़ज़रते (सय्यिदुना) ह़सन बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने उन के क़रीब आ कर येह शे'र पढ़े (जिन का तर्जमा कुछ यूं है) : (1) ऐ अल्लाह पाक के ना फ़रमान जवान ! जानता है ना फ़रमानी की सज़ा क्या है ? (2) ना फ़रमानों के लिये जहन्नम है और ह़श्र के दिन अल्लाह पाक की सख़्त नाराज़ी है । (3) अगर तू जहन्नम की आग पर राज़ी है, तो बेशक गुनाह करता रह, वरना गुनाहों से रुक जा । (4) तू ने अपने गुनाहों के बदले अपनी जान को गिरवी रख दिया है, इस को छुड़ाने की कोशिश कर ।
उ़त्बा ने फिर चीख़ मारी और बेहोश हो गए, जब होश आया, तो कहने लगे : ऐ शैख़ ! क्या मुझ जैसे बदबख़्त की रब्बे करीम तौबा क़बूल कर लेगा ? आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) ने कहा : मुआ़फ़ करने वाला रब्बे करीम ज़ालिम बन्दे की तौबा क़बूल फ़रमा लेता है । उस वक़्त उ़त्बा ने सर उठा कर अल्लाह पाक से तीन दुआ़एं कीं : (1) ऐ अल्लाह पाक ! अगर तू ने मेरे गुनाहों को मुआ़फ़ और मेरी तौबा को क़बूल कर लिया है, तो ऐसे ह़ाफ़िज़े और अ़क़्ल से मेरी इ़ज़्ज़त अफ़्ज़ाई फ़रमा कि मैं क़ुरआने करीम और दीनी उ़लूम में से जो कुछ भी सुनूं, उसे कभी फ़रामोश न करूं । (2) ऐ अल्लाह पाक ! मुझे ऐसी आवाज़ इ़नायत फ़रमा कि मेरी क़िराअत को सुन कर सख़्त से सख़्त दिल भी मोम हो जाए । (3) ऐ अल्लाह पाक ! मुझे रिज़्के़ ह़लाल अ़त़ा फ़रमा और ऐसे त़रीके़ से दे जिस का मैं तसव्वुर भी न कर सकूं । अल्लाह पाक ने उ़त्बा की तीनों दुआ़एं क़बूल फ़रमा लीं, उन का ह़ाफ़िज़ा और समझने की सलाह़िय्यत बढ़ गई । जब वोह क़ुरआन की तिलावत करते, तो हर सुनने वाला गुनाहों से ताइब हो जाता था, उन के घर में रोज़ाना एक पियाला शोरबे का और दो रोटियां (रिज़्के़ ह़लाल से) पहुंच जातीं, किसी को भी मा'लूम नहीं था कि येह कौन रख जाता है ? और उ़त्बा ग़ुलाम की सारी ज़िन्दगी ऐसा ही होता रहा । (मुकाशफ़तुल क़ुलूब, स. 67, मुलख़्ख़सन)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد