Chughli Ka Azaab-o-Chughal Khor Ki Mozammat

Book Name:Chughli Ka Azaab-o-Chughal Khor Ki Mozammat

सय्यिदुना उ़मर बिन अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ का त़र्ज़े अ़मल

          अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना उ़मर बिन अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ख़िदमते बा बरकत में एक शख़्स ह़ाज़िर हुवा और उस ने किसी के बारे में कोई मन्फ़ी (Negative) बात की । आप ने फ़रमाया : अगर तुम चाहो, तो हम तुम्हारे मुआ़मले की तह़क़ीक़ करें ! अगर तुम झूटे निकले, तो इस आयते मुबारका के मिस्दाक़ क़रार पाओगे :

اِنْ جَآءَكُمْ فَاسِقٌۢ بِنَبَاٍ فَتَبَیَّنُوْۤا (پ۲۶، الحجرات:۶)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : अगर कोई फ़ासिक़ तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए, तो तह़क़ीक़ कर लो ।

और अगर तुम सच्चे हुवे, तो येह आयत तुम पर सादिक़ आएगी :

هَمَّازٍ مَّشَّآءٍۭ بِنَمِیْمٍۙ(۱۱)(پ۲۹،القلم:۱۱)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : सामने सामने बहुत त़ा'ने देने वाला, चुग़ली के साथ इधर उधर बहुत फिरने वाला ।

        और अगर तुम चाहो, तो हम तुम्हें मुआ़फ़ कर दें ! उस ने अ़र्ज़ की : या अमीरल मोमिनीन ! मुआ़फ़ कर दीजिये ! आइन्दा मैं ऐसा (या'नी ग़ीबत और चुग़ल ख़ोरी) नहीं करूंगा । (इह़याउल उ़लूम, 3 / 193)

तुम मेरे पास तीन बुराइयां ले कर आए

          एक शख़्स ने किसी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की बारगाह में ह़ाज़िर हो कर उन्हें उन के दोस्त की कुछ मन्फ़ी (Negative) बातें बताईं । इस पर उन्हों ने इरशाद फ़रमाया : अफ़्सोस ! तुम मेरे पास तीन बुराइयां ले कर आए । (1) मुझे मेरे इस्लामी भाई से नफ़रत दिलाई (2) इस वज्ह से मेरे दिल को (तश्वीशों और वस्वसों में) मश्ग़ूल किया और (3) अपने अमीन नफ़्स पर तोहमत लगाई (या'नी मैं तुम्हें अमानत दार समझता था मगर तुम तो पेट के हल्के निकले !) ।

(इह़याउल उ़लूम, 3 / 193)

चुग़ल ख़ोर ख़ामोश हो गया

          'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ अपने छोटे भाई मौलाना मुह़म्मद रज़ा ख़ान से बड़ी मह़ब्बत फ़रमाते थे । एक बार मौलाना मुह़म्मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने अपनी ज़ौजा के लिये सोने के कंगन बनवाए । किसी चुग़ल ख़ोर ने आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से इस बात का तज़किरा किया, तो इमामे अहले सुन्नत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने बड़ा ख़ूब सूरत जवाब देते हुवे इरशाद फ़रमाया : अगर (मेरे भाई) मौलाना मुह़म्मद रज़ा ने येह कंगन अपने माल से बनवाए हैं, तो मुझे ख़ुशी है कि अल्लाह पाक ने मेरे भाई को इस क़दर माल अ़त़ा फ़रमाया है और अगर उन्हों ने मेरे माल से बनवाए हैं, तो मुझे इस से भी ज़ियादा ख़ुशी है कि मेरा भाई मेरे माल को अपना माल समझता है । येह जवाब सुन कर वोह चुग़ल ख़ोर नाकाम व ना मुराद और मायूस हो कर लौट गया ।

('ला ह़ज़रत के पसन्दीदा वाक़िआ़त, स. 35)

 صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!     صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد