Book Name:Bahan Bhaiyon Ke Sath Husne Sulook
عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की अ़त़ाओं और नवाज़िशों का सिलसिला अपनी रज़ाई़ बहन के साथ भी क़ाबिले दीद था कि जब आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की रज़ाई़ बहन ह़ज़रते शीमा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا, आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की बारगाह में ह़ाज़िर होतीं, तो आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ उन की तशरीफ़ आवरी पर ख़ुशी से खड़े हो जाते, उन की दिलजूई फ़रमाते और उन पर ख़ूब नवाज़िशें भी फ़रमाते ।
आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के इस पाकीज़ा अ़मल में हमारे लिये नसीह़त के मदनी फूल मौजूद हैं । क्या हम अपने बहन भाइयों के साथ मह़ब्बतों भरा सुलूक करती हैं या नहीं ? क्या हमारे भाई, बहन भी हम से राज़ी हैं या नहीं ? क्या हम अपनी बहनों को ख़ुश रखने का एहतिमाम करती हैं ? क्या हम उन्हें अपने यहां होने वाली तक़रीबात में बुलाती हैं या नहीं ? क्या हम उन के ह़ुक़ूक़ को पामाल तो नहीं करतीं ? बहर ह़ाल हमें चाहिये कि इस्लामी ता'लीमात को मशअ़ले राह बनाते हुवे अपने भाई बहनों के मुआमले में शफ़्क़त व मेहरबानी जैसा किरदार अदा करें और अपने आप को ऐसे माह़ोल से वाबस्ता रखें कि जहां पर हमें रिश्तेदारों के ह़ुक़ूक़ की बजा आवरी का भरपूर ज़ेहन दिया जाता हो ।
याद रखिये ! भाई बहनें एक दूसरे के दुख दर्द के मदावा होते हैं, मुश्किलात में एक दूसरे का सहारा बनते हैं लेकिन बसा अवक़ात बहन, भाई या बहनें एक दूसरे के ख़िलाफ़ हो जाती हैं और आपस में एक दूसरी को त़ा'ने देती और उन की दिल आज़ारी करती दिखाई देती हैं फिर जब कोई नुक़्सान पहुंचता है, तो अपने किये पर शर्मिन्दा होती हैं । आइये ! इस बारे में एक इ़ब्रतनाक वाक़िआ सुनिये । चुनान्चे,
दो सगी बहनों ने अपनी औलाद के रिश्ते आपस में त़ै किये, लड़की की नज़र कमज़ोर थी जिस की वज्ह से वोह चश्मा लगाती थी । कुछ अ़र्से बा'द दोनों बहनों के दरमियान इख़्तिलाफ़ात ने सर उठाया, बात यहां तक पहुंची कि एक बहन दूसरी बहन से कहने लगी : मैं अपने सह़ीह़ सलामत बेटे की शादी