Yazeediyon Ka Bura Kirdar

Book Name:Yazeediyon Ka Bura Kirdar

ह़िफ़ाज़त के लिए ख़न्दक़ में रौशन कर्दा आग की त़रफ़ देख कर एक बद ज़बान (मालिक बिन उ़रवह) इस त़रह़ बक्वास करने लगा : ऐ ह़ुसैन ! तुम ने वहां की आग से पेहले यहीं आग लगा दी । ह़ज़रते इमामे आ़ली मक़ाम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : کَذَبْتَ یَا عَدُوَّاللہ ऐ दुश्मने ख़ुदा ! तू झूटा है ! क्या तुझे येह गुमान है कि (مَعَاذَ اللّٰہ) मैं दोज़ख़ में जाऊंगा ? इमामे आ़ली मक़ाम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के क़ाफ़िले के एक जां निसार (ह़ज़रते) मुस्लिम बिन औ़सजा (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ) ने ह़ज़रते इमामे आ़ली मक़ाम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से उस मुंह फट, बद लगाम के मुंह पर तीर मारने की इजाज़त त़लब की । ह़ज़रते इमामे आ़ली मक़ाम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने येह फ़रमा कर इजाज़त देने से इन्कार किया कि हमारी त़रफ़ से ह़म्ले का आग़ाज़ नहीं होना चाहिए । फिर इमामे तिश्नाकाम (यानी प्यासे इमाम) رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने दस्ते दुआ़ बुलन्द कर के अ़र्ज़ की : ऐ रब्बे क़ह्हार ! इस ना बकार (यानी शरीर) को अ़ज़ाबे नार से क़ब्ल भी इस दुन्याए ना पाएदार में आग के अ़ज़ाब में मुब्तला फ़रमा । फ़ौरन दुआ़ मुस्तजाब (यानी क़बूल) हुई और उस के घोड़े का पाउं ज़मीन के एक सूराख़ पर पड़ा, जिस से घोड़े को झटका लगा और बे अदब व गुस्ताख़ यज़ीदी घोड़े से गिरा, उस का पाउं रिकाब में उलझा, घोड़ा उसे घसीटता हुवा दौड़ा और आग की ख़न्दक़ में डाल दिया और बद नसीब आग में जल कर भसम हो गया । इमामे आ़ली मक़ाम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने सजदए शुक्र किया, ह़म्दे इलाही बजा लाए और अ़र्ज़ की : या अल्लाह करीम ! तेरा शुक्र है कि तू ने आले रसूल के गुस्ताख़ को सज़ा दी । (सवानह़े करबला, स. 138, मुलख़्ख़सन)

सियाह बिच्छू ने डंक मारा

          गुस्ताख़ व बद लगाम यज़ीदी का हाथों हाथ भयानक अन्जाम देख कर भी बजाए इ़ब्रत ह़ासिल करने के इस को इत्तिफ़ाक़ी अम्र समझते हुवे एक बेबाक यज़ीदी ने बका : आप को अल्लाह करीम के रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم से क्या निस्बत ? येह सुन कर क़ल्बे इमाम को सख़्त ईज़ा पहुंची और तड़प कर दुआ़ मांगी : ऐ रब्बे जब्बार ! इस बद गुफ़्तार (यानी बुरा बोलने वाले) को अपने अ़ज़ाब में गिरिफ़्तार फ़रमा । दुआ़ का असर हाथों हाथ ज़ाहिर हुवा, उस बक्वासी को एकदम क़ज़ाए ह़ाजत की ज़रूरत पेश आई, फ़ौरन घोड़े से उतर कर एक त़रफ़ को भागा और बरहना (यानी नंगा) हो कर बैठा, नागाह (यकायक) एक सियाह बिच्छू ने डंक मारा, नजासत आलूदा तड़पता फिरता था, निहायत ही ज़िल्लत के साथ अपने लश्करियों के सामने इस बद ज़बान की जान निकली मगर उन संग (यानी पथ्थर) दिलों और बेशर्मों को इ़ब्रत न हुई, इस वाक़िए़ को भी उन लोगों ने इत्तिफ़ाक़ी अम्र समझ कर नज़र अन्दाज़ कर दिया । (सवानह़े करबला, स. 138, मुलख़्ख़सन)

          ऐ आ़शिक़ाने सह़ाबाओ अहले बैत ! मालूम हुवा कि दुन्या की मह़ब्बत सरासर नुक़्सान देह है जो दुन्या के पीछे भागता है, दुन्या उसे कहीं का नहीं छोड़ती जबकि जो ख़ुश नसीब दुन्या से बे रग़बती इख़्तियार करता है, तो दुन्या ख़ुद उस के क़दमों में चली आती है । दुन्या की मह़ब्बत से पीछा छुड़ाने और आख़िरत की फ़िक्र पैदा करने के लिए दावते इस्लामी के दीनी माह़ोल से वाबस्ता हो जाइए, اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस की बरकत से शरीअ़तो सुन्नत के मुत़ाबिक़ अ़मल करने की सआ़दत नसीब