Book Name:Yazeediyon Ka Bura Kirdar
बेहतरीन वोह है जो दुन्या से ज़ियादा बे रग़बती और आख़िरत में ज़ियादा रग़बत रखने वाला हो । (شعب الایمان،باب فی الزھدوقصرالامل، ۷/۳۴۳، حدیث:۱۰۵۲۱)
दुन्या से बे रग़बती किसे केहते हैं ?
ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मुनावी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक की शर्ह़ में फ़रमाते हैं : दुन्या के फ़ना और ऐ़बदार होने की वज्ह से बे रग़बती करे और आख़िरत की बुज़ुर्गी और हमेशा रेहने की वज्ह से आख़िरत में रग़बत रखे, अ़क़्लमन्द वोह है जो दुन्या और दुन्या के मैल कुचैल से अपने आप को बचाए और दुन्या को अपना ख़ादिम बनाए, ज़रूरत के मुत़ाबिक़ दुन्या जम्अ़ करे और इस के इ़लावा दुन्या से कनारा कशी इख़्तियार करे क्यूंकि जब कोई दुन्या से मुंह मोड़ता है, तो दुन्या उस के पास ज़लील हो कर आती है । जो दुन्या कमाने की ख़ात़िर जितना दुन्या के पीछे भागता है, दुन्या उस से उतनी ही भागती है, जैसे साया सूरज की त़रफ़ मुंह कर के चलने वाले के पीछे पीछे आता और सूरज से पीठ फेर कर चलने वाले के आगे आगे भागता है, अगर येह शख़्स अपने आगे भागने वाले साए को पकड़ने की कोशिश करे भी, तो नाकाम होगा ।(فیض القدیر،۳/۶۶۶ تحت الحدیث:۴۱۱۴)
न दीन के रहे, न दुन्या के
ऐ आ़शिक़ाने सह़ाबाओ अहले बैत ! येह ह़क़ीक़त है कि जो दुन्या के पीछे भागता है, तो दुन्या उसे अपने पीछे भगाती है और वोह दुन्या की मह़ब्बत में सरकश व ना फ़रमान हो कर धीरे धीरे दीन से दूर होता चला जाता है जबकि दुन्या भी उस के हाथ नहीं आती, कुछ ऐसा ही यज़ीदियों के साथ हुवा, जिन्हों ने दुन्या की मह़ब्बत में नवासए रसूल, इमामे आ़ली मक़ाम, इमामे ह़ुसैन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ और उन के घरवालों पर ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोडे़, उन पर पानी बन्द किया और फिर निहायत ही सफ़्फ़ाकी के साथ इमामे आ़ली मक़ाम, इमामे ह़ुसैन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को मअ़ उन के रुफ़क़ा के शहीद किया । इस ह़ुब्बे दुन्या ने उस से इतना बड़ा संगीन जुर्म तो करवा दिया मगर उन के हाथ कुछ न आया, बाज़ तो उसी मैदाने करबला में ही इ़ब्रत बन गए जबकि बाज़ बाद में अपने अन्जामे बद को पहुंचे । अब हम कुछ उन बदबख़्तों के अन्जाम के बारे में सुनेंगे जो मैदाने करबला में ही अपने अन्जाम को पहुंच गए । चुनान्चे,
घोड़े ने बद लगाम को आग में डाल दिया
मेरे शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी دَامَتْ بَرَکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपने एक रिसाले "इमामे ह़ुसैन की करामात" के सफ़ह़ा नम्बर 6 पर लिखते हैं : इमामे आ़ली मक़ाम, इमामे अ़र्श मक़ाम, इमामे हुमाम, इमामे तिशनाकाम, ह़ज़रते इमामे ह़ुसैन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ यौमे आ़शूरा यानी बरोज़ जुम्अ़तुल मुबारक 10 मोह़र्रमुल ह़राम 61 हि. को यज़ीदियों पर इत्मामे ह़ुज्जत (यानी अपनी दलील मुकम्मल) करने के लिए जिस वक़्त मैदाने करबला में ख़ुत़्बा इरशाद फ़रमा रहे थे, उस वक़्त आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के मज़्लूम क़ाफ़िले के ख़ैमों की