Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442

Book Name:Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442

धोका न दे कि इस की लज़्ज़तों में मश्ग़ूल हो कर तुम आख़िरत को भूल जाओ ((خازن، فاطر، تحت الآیۃ: ۵، ۳ / ۵۲۹-۵۳۰، ابو سعود، فاطر، تحت الآیۃ: ۵، ۴ / ۳۶۲، ملتقطاً

दुन्या की ज़िन्दगी से धोका न खाएं

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! दुन्या की ज़िन्दगी के बारे में अल्लाह पाक ने पारह 27, सूरए ह़दीद की आयत नम्बर 20 में इरशाद फ़रमाया :

كَمَثَلِ غَیْثٍ اَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهٗ ثُمَّ یَهِیْجُ فَتَرٰىهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ یَكُوْنُ حُطَامًاؕ-وَ فِی الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ شَدِیْدٌۙ-وَّ مَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَ رِضْوَانٌؕ-وَ مَا الْحَیٰوةُ الدُّنْیَاۤ اِلَّا مَتَاعُ الْغُرُوْرِ(۲۰))پ۲۷،الحدید:۲۰(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : (दुन्या की ज़िन्दगी ऐसे है) जैसे वोह बारिश जिस का उगाया हुवा सब्ज़ा किसानों को अच्छा लगा फिर वोह सब्ज़ा सूख जाता है, तो तुम उसे ज़र्द देखते हो फिर वोह पामाल किया हुवा (बेकार) हो जाता है और आख़िरत में सख़्त अ़ज़ाब है और अल्लाह की त़रफ़ से बख़्शिश और उस की रिज़ा (भी है) और दुन्या की ज़िन्दगी तो सिर्फ़ धोके का सामान है ।

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हमें चाहिए कि दुन्या की रंगीनियों और इस की लज़्ज़तों में खोने की बजाए अपनी आख़िरत की तय्यारी में मसरूफ़ रहें । ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا फ़रमाते हैं, रसूले अकरम  صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने मेरा कन्धा पकड़ कर फ़रमाया : दुन्या में यूं रहो गोया तुम मुसाफ़िर हो या राह चलते । ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا फ़रमाते थे : जब तुम शाम पा लो, तो सुब्ह़ के मुन्तज़िर न रहो और जब सुब्ह़ पा लो, तो शाम की उम्मीद न रखो और अपनी तन्दुरुस्ती से बीमारी के लिए और ज़िन्दगी से मौत के लिए कुछ सामान ले लो । (بخاری، کتاب الرقاق،باب قول النبی صلی اللہ علیہ وسلم: کن فی الدنیا۔۔الخ،۴/۲۲۳، حدیث: ۴۶۱۶) अल्लाह पाक हमें दुन्या की ह़क़ीक़त को समझने और इस की रंगीनियों से धोका न खाने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए, اٰمِیْن । (तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, 8 / 171, मुल्तक़त़न व मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                               صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ताजदारे रिसालत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم और अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام मौत को कसरत से याद किया करते और लोगों को इस की याद दिलाया करते थे । चुनान्चे, रिवायात में है : ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام जब मौत का ज़िक्र सुनते, तो उन के जिस्म से ख़ून के क़त़रे गिरने लगते । ह़ज़रते दावूद عَلَیْہِ السَّلَام जब मौत और क़ियामत का ज़िक्र करते, तो उन की सांसें उखड़ जातीं और बदन पर लरज़ा त़ारी हो जाता, जब रह़मत का ज़िक्र करते, तो उन की ह़ालत संभल जाती । रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जब मैं अपनी आंखें झपकता हूं, तो मुझे येह गुमान होता है कि मेरी पल्कें मिलने से पेहले मेरी रूह़ क़ब्ज़ कर ली जाएगी, जब नज़र उठाता हूं, तो मुझे लगता है कि नज़र नीची करने से पेहले मेरा विसाल हो जाएगा, जब कोई लुक़्मा मुंह में डालता हूं, तो मह़सूस होता है कि येह लुक़्मा गले से उतरते वक़्त मेरे लिए मौत का सबब बन जाएगा । ऐ आदम की औलाद ! अगर तुम अ़क़्ल रखते हो, तो अपने आप को मुर्दों में शुमार