Book Name:Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मौत को कसरत से याद रखने के त़रीक़ों में से एक त़रीक़ा येह भी है कि हम मौत की सख़्ती को अपने ज़ेह्न में रखें, मसलन मौत की ह़क़ीक़त क्या है ? और मौत के बाद के मुआ़मलात कैसे होंगे ? जब येह मालूमात होंगी, तो ही मौत को याद रखने के साथ आख़िरत की तय्यारी का ज़ेह्न बनेगा ।
ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ रूह़ निकलने की तक्लीफ़ की शिद्दत और उस की कैफ़िय्यात की मन्ज़र कशी करते हुवे फ़रमाते हैं : नज़अ़ उस तक्लीफ़ का नाम है जो बराहे रास्त रूह़ पर उतरती है और तमाम अज्ज़ा को घेर लेती है, यहां तक कि रूह़ का वोह ह़िस्सा भी तक्लीफ़ मह़सूस करता है जो बदन की गेहराइयों में है । नज़अ़ की तकालीफ़ बराहे रास्त रूह़ पर ह़म्ला करती हैं और फिर येह तकालीफ़ तमाम बदन में यूं फैल जाती हैं कि हर हर रग, पठ्ठे, ह़िस्से और जोड़ से रूह़ खींची जाती है, हर बाल की जड़ से, यहां तक कि सर से ले कर पाउं तक खाल के हर ह़िस्से से रूह़ निकाली जाती है, लिहाज़ा उस वक़्त की तक्लीफ़ और दर्द का कौन अन्दाज़ा कर सकता है !
बुज़ुर्गों ने फ़रमाया : मौत की तक्लीफ़ तलवार के वार, आरे के चीरने और कै़ंची के काटने से भी ज़ियादा तक्लीफ़ देह है क्यूंकि जब तलवार का वार बदन पर पड़ता है, तो बदन को तक्लीफ़ इसी वज्ह से मह़सूस होती है कि उस का रूह़ के साथ तअ़ल्लुक़ क़ाइम है । अन्दाज़ा कीजिए ! उस वक्त किस क़दर तक्लीफ़ होगी जब तलवार बराहे रास्त रूह़ पर पड़ेगी ? जब किसी को तलवार से ज़ख़्मी किया जाए, तो मदद मांग सकता है, चीख़ो पुकार कर सकता है क्यूंकि उस की ज़बान व जिस्म में त़ाक़त मौजूद है जबकि मरने वाले की आवाज़ और चीख़ो पुकार तक्लीफ़ की वज्ह से ख़त्म हो जाती है क्यूंकि मौत की तक्लीफ़ उस वक़्त दिल पर ग़लबा कर लेती है, पूरे बदन की त़ाक़त छीन कर हर ह़िस्से को कमज़ोर कर देती है, किसी भी ह़िस्से में मदद मांगने की त़ाक़त नहीं रेहने देती, सोचने, समझने की सलाह़िय्यत पर ग़ालिब आ कर उसे ह़ैरान व परेशान कर देती है, ज़बान को गूंगा और बाक़ी जिस्मानी ह़िस्सों को बे जान कर देती है, येही वज्ह है कि अगर कोई शख़्स नज़अ़ के वक़्त रोना चाहे, चिल्लाना चाहे, मदद मांगना चाहे, तब भी ऐसा नहीं कर सकता और अगर कुछ त़ाक़त बाक़ी भी हो, तो उस वक़्त ह़ल्क़ और सीने से ग़रग़रा और गाय, बैल के डकारने (चिल्लाने) की आवाज़ ही आती और रंग मट्याला हो जाता है गोया मिट्टी से बना था, तो मरते वक़्त भी मिट्टी ज़ाहिर होती है । हर रग से रूह़ निकाली जाती है जिस की वज्ह से तक्लीफ़ जिस्म के अन्दर बाहर हर जगह फैल जाती है, आंखों के ढेले ऊपर चढ़ जाते हैं, होंट सूख जाते हैं, ज़बान सुकड़ जाती है और उंगलियां नीली पड़ जाती हैं । जिस बदन की हर हर रग से रूह़ निकाली जा चुकी हो, उस की ह़ालत मत पूछो क्यूंकि अगर जिस्म की एक रग भी खिंच जाए, तो बहुत ज़ियादा तक्लीफ़ होती है । ज़रा ग़ौर तो करो कि पूरी रूह़ को एक रग से नहीं बल्कि हर हर रग से निकाला