Book Name:Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442
जाता है, तो किस क़दर तक्लीफ़ होती होगी ? और फिर आहिस्ता आहिस्ता जिस्म के हर हर ह़िस्से पर मौत त़ारी होती है, पेहले क़दम ठन्डे पड़ते हैं फिर पिन्डलियां और फिर रानें ठन्डी पड़ जाती हैं और यूं जिस्म के हर हर ह़िस्से को सख़्ती के बाद फिर सख़्ती और तक्लीफ़ के बाद फिर तक्लीफ़ का सामना करना पड़ता है, यहां तक कि रूह़ ह़ल्क़ तक खींच ली जाती है, येही वोह वक़्त होता है जब मरने वाले की उम्मीदें दुन्या और दुन्या वालों से ख़त्म हो जाती हैं और फिर ह़सरतो नदामत उसे चारों जानिब से घेर लेती है । (इह़याउल उ़लूम मुर्तजम, 5 / 511 ता 512, मुल्तक़त़न)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हमारी दुन्यावी और उख़रवी ज़िन्दगी के दरमियान मौत की घाटी ह़ाइल है, जिस दिन हम ने येह घाटी उ़बूर कर ली, कभी वापसी न होगी । लिहाज़ा मौत की इस पुर ख़त़र घाटी को याद रखिए जिसे हर एक ने पार करना है, लिहाज़ा इस से ग़फ़्लत इख़्तियार न कीजिए ।
अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपने रिसाले "वीरान मह़ल" के सफ़ह़ा नम्बर 18 पर मौत को हमेशा याद रखने के मुतअ़ल्लिक़ फ़रमाते हैं : काम्याब व अ़क़्लमन्द वोही है जो दूसरों को मरता देख कर अपनी मौत याद करे और क़ब्रो आख़िरत की तय्यारी कर ले । जैसा कि बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِم का इरशाद है : اَلسَّعِیْدُ مَنْ وُعِظَ بِغَیرِہٖ सआ़दतमन्द वोह है जो दूसरों से नसीह़त ह़ासिल करे । ((اتحاف السادة،کتاب ذ کر الموت وما بعدہ،الباب الاول فی ذکر الموت ۱۴/۳۲
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मौत की याद के लिए जहां तसव्वुरे मौत करना और बुज़ुर्गों के मौत की याद के वाक़िआ़त पढ़ना बहुत मुफ़ीद है, इसी त़रह़ अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रसाइल "क़ब्र की पेहली रात" "वीरान मह़ल" "मुर्दे के सदमे" "मुर्दे की बे बसी" "क़ब्र का इम्तिह़ान" "क़ियामत का इम्तिह़ान" "पुर असरार भिकारी" वग़ैरा पढ़ने से भी मौत की याद ताज़ा होगी और इन्ही रसाइल के ऑडियो बयानात "मौलाना मुह़म्मद इल्यास क़ादिरी ऐप (Maulana Muhammad Ilyas Qadri App)" से सुने भी जा सकते हैं । इस के इ़लावा क़ब्रिस्तान की ह़ाज़िरी, ग़ुस्ले मय्यित, कफ़न दफ़्न के मुआ़मलात में शामिल होना भी मौत की याद दिलाता है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! अ़क़्लमन्द वोही है जो मौत से क़ब्ल मौत की तय्यारी करते हुवे नेकियों का ज़ख़ीरा इकठ्ठा कर ले और यूं क़ब्र की रौशनी का इन्तिज़ाम कर ले, वरना क़ब्र हरगिज़ येह लिह़ाज़ न करेगी कि मेरे अन्दर कौन आया ? अमीर हो या फ़क़ीर, वज़ीर हो या उस का मुशीर, ह़ाकिम हो या मह़कूम, अफ़्सर हो या नौकर, सेठ हो या मुलाज़िम, डॉक्टर हो या मरीज़, अगर किसी के साथ भी तोशए आख़िरत में कमी रही, नमाज़ें क़स्दन क़ज़ा कीं, रमज़ान शरीफ़ के रोज़े