Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442

Book Name:Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442

اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ وَالصَّلٰوۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی سَیِّدِ الْمُرْسَلِیْنط

اَمَّا بَعْدُ! فَاَعُوْذُ بِاللّٰہِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْم ط بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْم ط

اَلصَّلٰوۃُ وَ السَّلَامُ عَلَیْكَ یَا رَسُولَ اللہ                                                        وَعَلٰی اٰلِكَ وَ اَصْحٰبِكَ یَا حَبِیْبَ اللہ

اَلصَّلٰوۃُ وَ السَّلَامُ عَلَیْكَ یَا نَبِیَّ اللہ                                                                                وَعَلٰی اٰلِكَ وَ اَصْحٰبِكَ یَا نُوْرَ اللہ

نَوَیْتُ سُنَّتَ الْاِعْتِکَاف    (तर्जमा : मैं ने सुन्नत एतिकाफ़ की निय्यत की)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जब कभी दाख़िले मस्जिद हों, याद आने पर एतिकाफ़ की निय्यत कर लिया करें कि जब तक मस्जिद में रहेंगे, एतिकाफ़ का सवाब मिलता रहेगा । याद रखिए ! मस्जिद में खाने, पीने, सोने या सह़री, इफ़्त़ारी करने, यहां तक कि आबे ज़मज़म या दम किया हुवा पानी पीने की भी शरअ़न इजाज़त नहीं ! अलबत्ता अगर एतिकाफ़ की निय्यत होगी, तो येह सब चीज़ें जाइज़ हो जाएंगी । एतिकाफ़ की निय्यत भी सिर्फ़ खाने, पीने या सोने के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि इस का मक़्सद अल्लाह करीम की रिज़ा हो । फ़तावा शामी में है : अगर कोई मस्जिद में खाना, पीना, सोना चाहे, तो एतिकाफ़ की निय्यत कर ले, कुछ देर ज़िक्रुल्लाह करे फिर जो चाहे करे (यानी अब चाहे तो खा, पी या सो सकता है) ।

दुरूद शरीफ़ की फ़ज़ीलत

          अल्लाह पाक के आख़िरी नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : اِذَا صَلَّیْتُمْ عَلَی الْمُرْسَلِیْنَ فَصَلُّوْا عَلَیَّ مَعَھُمْ فَاِنِّیْ رَسُوْلٌ مِّنْ رَّبِّ الْعَالَمِیْنَ जब तुम रसूलों (عَلٰی نَبِیِّنَا وَ عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام) पर दुरूदे पाक पढ़ो, तो मुझ पर भी पढ़ो, बेशक मैं तमाम जहानों के रब्बे करीम का रसूल हूं  (کنزالعمال،کتاب الاذکار،الباب السادس فی الصلاۃ علیہ وعلی آلہ۔۔۔الخ، جز۱،۱۲۵۶،حدیث: ۲۲۴۱ (

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم : "اَفْضَلُ الْعَمَلِ اَلنِّيَّۃُ الصَّادِقَۃُ" सच्ची निय्यत सब से अफ़्ज़ल अ़मल है । (جامع صغیر، صفحہ:۸۱، حدیث:۱۲۸۴)

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! हर काम से पेहले अच्छी अच्छी निय्यतें करने की आ़दत बनाइए कि अच्छी निय्यत बन्दे को जन्नत में दाख़िल कर देती है । बयान सुनने से पेहले भी अच्छी अच्छी निय्यतें कर लीजिए । मसलन निय्यत कीजिए : ٭ इ़ल्म सीखने के लिए पूरा बयान सुनूंगा । ٭ बा अदब बैठूंगा । ٭ दौराने बयान सुस्ती से बचूंगा । ٭ अपनी इस्लाह़ के लिए बयान सुनूंगा ।٭ जो सुनूंगा, दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

मौत की याद

          ह़ज़रते सालिम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : एक मरतबा मुल्के रूम से कुछ नुमाइन्दे ह़ज़रते उ़मर बिन अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के पास आए, तो आप ने फ़रमाया : जब तुम लोग किसी को अपना