Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442

Book Name:Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442

दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ने अपनी वफ़ात के अवक़ात में हमें समझाने और मौत की सख़्तियों का एह़सास दिलाने के लिए इन्हें मिसालों के ज़रीए़ बयान किया है । आइए ! इसी बारे में चन्द रिवायात सुनते हैं ।

मरने वाले पर तअ़ज्जुब

          ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र बिन आ़स رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا फ़रमाते हैं : मेरे वालिदे मोह़तरम, ह़ज़रते अ़म्र बिन आ़स رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाया करते थे : मुझे मरने वाले इन्सान पर तअ़ज्जुब होता है कि अ़क़्ल और ज़बान होने के बा वुजूद वोह क्यूं मौत और उस की कैफ़िय्यत बयान नहीं करता ? आप फ़रमाते हैं : जब मेरे वालिदे मोह़तरम का वक़्ते विसाल क़रीब आया, तो मैं ने अ़र्ज़ की : ऐ बाबाजान ! आप तो ऐसे ऐसे फ़रमाया करते थे । तो उन्हों ने इरशाद फ़रमाया : ऐ मेरे बेटे ! मौत इस से ज़ियादा सख़्त है कि इस को बयान किया जाए फिर भी मैं कुछ बयान किए देता हूं । अल्लाह पाक की क़सम ! गोया मेरे कन्धों पर रज़वा (एक मश्हूर पहाड़) और तिहामा के पहाड़ रख दिए गए हैं और गोया मेरी रूह़ सूई के नाके से निकाली जा रही है, गोया मेरे पेट में एक कांटेदार टेहनी है और आसमान, ज़मीन से मिल गया है और मैं इन दोनों के दरमियान हूं । (مستدرک،کتاب معرفة الصحابة، باب وصف الموت فی حالة  النزع،۵/۵۶۹،حدیث۵۹۶۹)

मौत ऐसे जैसे ज़िन्दा चिड़िया को भूनना

          मन्क़ूल है : ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام से अल्लाह करीम ने पूछा : मौत को कैसा पाया ? आप عَلَیْہِ السَّلَام ने जवाब दिया : मौत उस चिड़िया की त़रह़ है जिसे ज़िन्दा कड़ाही में भूना जा रहा हो, अब न तो वोह मरे कि राह़त पाए और न नजात पाए कि उड़ जाए ।(احیاء علوم الدین،کتاب الذکروالموت ومابعدھا،باب ثالث فی سکرات الموت۔۔۔ الخ ، ۵/۲۱۰)

मौत की शिद्दत

          एक बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के बारे में आता है : वोह बीमारों की इ़यादत बहुत ज़ियादा किया करते और पूछते : तुम मौत को कैसा पाते हो ? जब उन का आख़िरी वक़्त आया, तो किसी ने पूछा : आप मौत को कैसा पाते हैं ? फ़रमाया : गोया आसमानों को ज़मीन से मिला दिया गया है और मेरी रूह़ सूई बराबर सूराख़ से निकल रही है । (इह़याउल उ़लूम, 5 / 517)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                               صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हम मौत की तल्ख़ी के बारे में सुन रहे थे । यक़ीनन गुनाहों के बढ़ते हुवे सैलाब और बुरी सोह़बतों ने हमें फ़िक्रे आख़िरत और फ़िक्रे मौत से बहुत दूर कर दिया है । हमारे बुज़ुर्गों का येह त़रीक़ा था कि वोह पाकीज़ा लोग कसरत से मौत को याद करते थे, हमें भी मौत को याद करने की आ़दत बनानी चाहिए । बाज़ बुज़ुर्गों के बारे में तो मन्क़ूल है : जब उन के सामने मौत और क़ब्रो आख़िरत की बात की जाती, तो उन की ह़ालत ग़ैर हो जाती, किसी का