Book Name:Mout Ki Yad Kay Fazail Shab e Qadr 1442
बादशाह बनाते हो, तो उस का क्या ह़ाल होता है ? केहने लगे : जब हम किसी को अपना बादशाह बनाते हैं, तो उस के पास एक क़ब्र खोदने वाला आ कर केहता है : ऐ बादशाह ! अल्लाह पाक तेरी इस्लाह़ फ़रमाए ! जब तुझ से पेहला बादशाह तख़्त नशीन हुवा, तो उस ने मुझे ह़ुक्म दिया : मेरी क़ब्र इस इस त़रह़ बनाना और मुझे इस त़रह़ दफ़्न करना । चुनान्चे, क़ब्र तय्यार कर ली गई । फिर उस के पास कफ़न फ़रोश आ कर केहता है : ऐ बादशाह ! अल्लाह पाक तेरी इस्लाह़ फ़रमाए ! जब तुझ से पेहला बादशाह तख़्त नशीन हुवा, तो उस ने मरने से क़ब्ल ही अपना कफ़न, ख़ुश्बू और काफ़ूर वग़ैरा ख़रीद लिया फिर कफ़न को ऐसी जगह लटका दिया गया जहां हर वक्त नज़र पड़ती रहे और मौत की याद आती रहे । ऐ मुसलमानों के अमीर ! हमारे बादशाह तो इस त़रह़ मौत को याद करते हैं । रूमी नुमाइन्दे की येह बात सुन कर ह़ज़रते उ़मर बिन अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने फ़रमाया : देखो ! जो शख़्स अल्लाह पाक से मिलने की उम्मीद भी नहीं रखता, वोह मौत को किस त़रह़ याद करता है, उसे भी मौत की कितनी फ़िक्र है ? इस वाक़िए़ के बाद आप बहुत ज़ियादा बीमार हो गए और इसी बीमारी की ह़ालत में आप का इन्तिक़ाल हो गया । (عیون الحکایات،الحکایة التاسعة والتسعون بعد الاربعة،ص۴۲۷)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मौत का वक़्त मुकर्रर है और इस से फ़रार होना भी मुमकिन नहीं, येह ऐसी ह़क़ीक़त है कि अल्लाह पाक ने ह़ज़रते आदम عَلَیْہِ السَّلَام को जब ज़मीन पर उतारा, उसी वक़्त फ़रमा दिया :
وَ لَكُمْ فِی الْاَرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَّ مَتَاعٌ اِلٰى حِیْنٍ(۳۶) (پ۱،البقرة:۳۶)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और तुम्हारे लिए ज़मीन में एक वक़्त तक ठेहरना और नफ़्अ़ उठाना है ।
और मौत ऐसी यक़ीनी है कि अल्लाह पाक ने क़ुरआने करीम में इसे लफ़्ज़े यक़ीन के साथ बयान फ़रमाया । चुनान्चे, इरशादे बारी है :
وَ اعْبُدْ رَبَّكَ حَتّٰى یَاْتِیَكَ الْیَقِیْنُ۠(۹۹)) پ۱۴،الحجر:۹۹(
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अपने रब की इ़बादत करते रहो, ह़त्ता कि तुम्हें मौत आ जाए ।
रब्बे करीम की शाने करीमी है कि वोह रोज़ाना हमें मीठी नींद सुला कर और नींद से बेदार फ़रमा कर मौत की याद दिलाता है । चुनान्चे, अल्लाह पाक पारह 24, सूरए ज़ुमर की आयत नम्बर 42 में इरशाद फ़रमाता है :
اَللّٰهُ یَتَوَفَّى الْاَنْفُسَ حِیْنَ مَوْتِهَا وَ الَّتِیْ لَمْ تَمُتْ فِیْ مَنَامِهَاۚ-فَیُمْسِكُ الَّتِیْ قَضٰى عَلَیْهَا الْمَوْتَ وَ یُرْسِلُ الْاُخْرٰۤى اِلٰۤى اَجَلٍ مُّسَمًّىؕ-اِنَّ فِیْ ذٰلِكَ لَاٰیٰتٍ لِّقَوْمٍ یَّتَفَكَّرُوْنَ(۴۲)) پ۲۴، الزُّمَرْ :۴۲(