Book Name:Tarbiyat e Aulad
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : यानी जब तुम्हारी लड़की के लिए दीनदार आ़दातो अत़्वार का दुरुस्त लड़का मिल जाए, तो सिर्फ़ माल की हवस (लालच) में और लखपती के इन्तिज़ार में जवान लड़की के निकाह़ में देर न करो, इस लिए कि अगर मालदार के इन्तिज़ार में लड़कियों के निकाह़ न किए गए, तो उधर तो लड़कियां बहुत कुंवारी बैठी रहेंगी और इधर लड़के बहुत से बे शादी रहेंगे, जिस से बदकारी फैलेगी और बदकारी की वज्ह से लड़की वालों को शर्मिन्दगी होगी, नतीजा येह होगा कि ख़ानदान आपस में लड़ेंगे, क़त्लो ग़ारत होंगे जिस का आज कल ज़ुहूर होने लगा है । (मिरआतुल मनाजीह़, 5 / 8, मुलख़्ख़सन)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अफ़्सोस ! फ़ी ज़माना सारी कोशिशें बच्चों की दुन्यावी तालीम के बारे में की जाती हैं, दीनी तालीमो तरबियत की त़रफ़ कोई तवज्जोह नहीं दी जाती । बच्चों को डॉक्टर, इन्जीनियर और पाइलट बनाने का ख़्वाब तो हर मां-बाप देखते हैं लेकिन बच्चों को ह़ाफ़िज़े क़ुरआन बनाने, आ़लिम व मुफ़्ती बनाने वाले वालिदैन अब बहुत कम हैं । बच्चों को फै़शनऐबल और मॉडर्न ज़िन्दगी गुज़ारते देखना मां-बाप का शौक़ है लेकिन प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की सुन्नतों के मुत़ाबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते देखने का ख़्वाब शायद ही वालिदैन के ज़ेह्न में हो । बहर ह़ाल आज के इस पुर फ़ितन दौर में अपनी औलाद की दीनी तरबियत बहुत ज़रूरी है, वरना दुन्या के साथ साथ आख़िरत में भी नुक़्सान उठाना पड़ सकता है । अपनी औलाद की अच्छी तरबियत करने के ह़वाले से क़ुरआने करीम में तरग़ीब दिलाई गई है । चुनान्चे,
पारह 28, सूरतुत्तह़रीम की आयत नम्बर 6 में रब्बे करीम इरशाद फ़रमाता है :
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِیْكُمْ نَارًا وَّ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ) پ۲۸ ،التحریم:۶(
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ ईमान वालो ! अपनी जानों और अपने घरवालों को उस आग से बचाओ जिस का ईंधन आदमी और पथ्थर हैं ।
ह़ज़रते इमाम जलालुद्दीन सुयूत़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस आयते करीमा के तह़्त "तफ़्सीरे दुर्रे मन्सूर" में फ़रमाते हैं : जब नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इस आयते मुबारका की तिलावत फ़रमाई, तो सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ! हम अपने घरवालों को किस त़रह़ आग से बचाएं ? तो आप ने फ़रमाया : उन्हें उन कामों का ह़ुक्म दो जो अल्लाह करीम को पसन्द हैं और उन कामों से मन्अ़ करो जो अल्लाह पाक को ना पसन्द हैं । (تفسیردر منثور،پ۲۸،التحریم،تحت الآیۃ:۶، ۸ / ۲۲۵)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा आयते करीमा और उस की तफ़्सीर से मालूम हुवा ! जहां हम पर अपनी इस्लाह़ ज़रूरी है, वहीं औलाद की इस्लामी तालीमो तरबियत करना भी लाज़िम है, लिहाज़ा हर एक को चाहिए कि वोह अपने बच्चों और घर में जो अफ़राद उस के मातह़्त