Tarbiyat e Aulad

Book Name:Tarbiyat e Aulad

लिया करें । हो सके, तो ई़दे मेराजुन्नबी की निस्बत से 127 या 27 रिसाले या ह़स्बे तौफ़ीक़ फै़ज़ाने रमज़ान भी तक़्सीम फ़रमाइए और ढेरों सवाब कमाइए । दावते इस्लामी की त़रफ़ से रजबुल मुरज्जब की 27वीं शब "जश्ने मेराजुन्नबी" के सिलसिले में होने वाली "मेह़फ़िले नात (इजतिमाए़ मेराज)" में तमाम इस्लामी भाई शुरूअ़ से आख़िर तक शिर्कत फ़रमाया कीजिए और 27 रजब शरीफ़ का रोज़ा रख कर 60 माह के रोज़ों के सवाब के ह़क़दार बनिए ।

          तमाम इस्लामी भाइयों से बिल उ़मूम और जामिआ़तुल मदीना और मदारिसुल मदीना के जुम्ला क़ारी साह़िबान, असातिज़ा, नाज़िमीन और त़लबा की ख़िदमतों में बिल ख़ुसूस तड़पती हुई अ़र्ज़ है कि बराए करम ! (मेरे जीते जी और मरने के बाद भी) ज़कात, फ़ित़्रा, क़ुरबानी की खालें और फ़न्ड्ज़ जम्अ़ करने में बढ़ चढ़ कर ह़िस्सा लिया कीजिए (इस्लामी बहनें दीगर इस्लामी बहनों और मह़ारिम को फ़न्ड्ज़ जम्अ़ करने की तरग़ीब दिलाएं) । ख़ुदा की क़सम ! मुझे उन असातिज़ा और त़लबा के बारे में सुन कर बहुत ख़ुशी होती है जो अपने गांव या शहर में जाने की ख़्वाहिश को क़ुरबान कर के रमज़ानुल मुबारक जामिआ़त में गुज़ारते और अपनी मजलिस की हिदायात के मुत़ाबिक़ डोनेशन के बस्तों पर ज़िम्मेदारियां संभालते हैं । अल्लाह पाक हमें अ़मल की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

जूते पेहनने की सुन्नतें और आदाब

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइए ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "101 मदनी फूल" से जूते पेहनने की सुन्नतें और आदाब सुनते हैं । पेहले 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم : (1) जूते कसरत से इस्तिमाल किया करो कि आदमी जब तक जूते पेहने होता है, गोया वोह सुवार होता है (यानी कम थकता है) । (مُسلِم، ص۱۱۶۱، حدیث: ۲۰۹۶) (2) जूते पेहनने से पेहले झाड़ लीजिए ताकि कीड़ा या कंकर वग़ैरा हो, तो निकल जाए । (3) जब तुम में से कोई जूते पेहने, तो सीधी जानिब से इब्तिदा करनी चाहिए और जब उतारे, तो उल्टी जानिब से इब्तिदा करनी चाहिए ताकि सीधा पाउं पेहनने में अव्वल और उतारने में आख़िरी रहे । (بُخاری،۴/۶۵،حدیث:۵۸۵۵) ٭ आला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब मस्जिद में जाना हो, तो पेहले उल्टे पाउं को निकाल कर जूते पर रख लीजिए फिर सीधे पाउं से जूता निकाल कर मस्जिद में दाख़िल हो जाइए और जब मस्जिद से बाहर हों, तो उल्टा पाउं निकाल कर जूते पर रख लीजिए फिर सीधा पाउं निकाल कर सीधा जूता पेहन लीजिए फिर उल्टा पेहन लीजिए । (नुज़्हतुल क़ारी, 5 / 530) ٭ मर्द मर्दाना और औ़रत ज़नाना जूता इस्तिमाल करे । ٭ किसी ने ह़ज़रते आ़इशा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا से कहा : एक औ़रत (मर्दों की त़रह़) जूते पेहनती है । उन्हों ने फ़रमाया : रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने मर्दानी औ़रतों पर लानत फ़रमाई है । (ابوداود،۴/۸۴،حديث:۴۰۹۹) ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : यानी औ़रतों को मर्दाना जूता नहीं पेहनना चाहिए बल्कि वोह तमाम बातें जिन में मर्दों और औ़रतों का इम्तियाज़ होता है, उन में हर एक को दूसरे की वज़अ़