Book Name:Tarbiyat e Aulad
ताजिरान" का क़ियाम अ़मल में आया, जिस का काम शोबए तिजारत से वाबस्ता लोगों को तिजारत के बारे में इस्लामी तालीमात से आगाह कराना, उन में आ़शिक़ाने रसूल की दीनी तह़रीक दावते इस्लामी के नेकी की दावत की धूमें मचाने के पैग़ाम को आ़म करना और उन्हें दावते इस्लामी के दीनी माह़ोल से वाबस्ता करते हुवे बाज़ारों में दीनी माह़ोल बनाने के लिए मस्जिद या किसी भी मुनासिब मक़ाम पर दर्स वग़ैरा देने का एहतिमाम करना है, जिसे "ऐरिया दर्स" कहा जाता है । मदनी चेनल पर बा क़ाइ़दा एक मालूमाती प्रोग्राम "अह़कामे तिजारत" के नाम से नश्र किया जाता है । बड़ी बड़ी मार्कीट्स, शॉपिंग मॉल्ज़ वग़ैरा में मद्रसतुल मदीना बालिग़ान का एहतिमाम किया जाता है । अहले मह़ब्बत मिल / फे़क्ट्री मालिकान (Factory Owners) को मदनी क़ाफ़िलों में सफ़र का ज़ेह्न देने के साथ साथ उन के तह़्त काम करने वाले मुलाज़िमीन को भी हर माह मदनी क़ाफ़िले में सफ़र की तरग़ीब दिलाई जाती है । फे़क्ट्री व कारख़ाने में मस्जिद या जाए नमाज़ का एहतिमाम किया जाता है ताकि येह आ़शिक़ाने रसूल भी नमाज़ों की पाबन्दी कर सकें । फे़क्ट्री व कारख़ाने की मस्जिद या जाए नमाज़ में माहे रमज़ान में नमाज़े तरावीह़ का भी एहतिमाम किया जाता है । ताजिरान को "माहनामा फै़ज़ाने मदीना" का मुत़ालआ़ करने के साथ साथ इस की सालाना बुकिंग की तरग़ीब दिलाई जाती है । ताजिरान को शरई़ रेहनुमाई के लिए दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत से शरई़ रेहनुमाई लेते रेहने का ज़ेह्न दिया जाता है । ताजिरान को मार्कीटों, शॉपिंग मॉल्ज़ वग़ैरा में ही जुज़ वक़्ती फै़ज़ाने नमाज़ कोर्स करने की भी तरग़ीब दिलाई जाती है कि अपने काम काज और वक़्त की सहूलत के मुत़ाबिक़ "फै़ज़ाने नमाज़ कोर्स" कर के अपनी नमाज़ दुरुस्त करने की सआ़दत ह़ासिल करें ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! याद रखिए ! इस बात में कोई शक नहीं कि जब घर का माह़ोल अच्छा हो, घर में अल्लाह पाक और उस के प्यारे
रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी वाले काम होते हों, घर में तिलावते क़ुरआन और नमाज़ों की पाबन्दी करने वाले होंगे, तो बच्चों को भी दीनी तालीम का शौक़ो ज़ौक़ नसीब होगा । चुनान्चे,
इमामे अहले सुन्नत, आला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की ज़ाते गिरामी को ही देख लीजिए कि घर का माह़ोल अच्छा होने की वज्ह से आप ने साढ़े चार साल की नन्ही सी उ़म्र में क़ुरआने मजीद नाज़िरा मुकम्मल पढ़ लिया, 6 साल के थे कि रबीउ़ल अव्वल के मुबारक महीने में मिम्बर पर जल्वा अफ़रोज़ हो कर मीलादुन्नबी के मौज़ूअ़ पर एक बहुत बड़े इजतिमाअ़ में बेहतरीन तक़रीर फ़रमा कर उ़लमाए किराम और मशाइख़े इ़ज़्ज़ाम से दाद वुसूल की, 6 साल की उ़म्र में ही आप ने बग़दाद शरीफ़ की सम्त मालूम कर ली फिर सारी ज़िन्दगी ग़ौसे आज़म के मुबारक शहर की त़रफ़ पाउं न फैलाए, नमाज़ से तो इ़श्क़ की ह़द तक लगाव था । चुनान्चे, नमाज़े पंजगाना बा जमाअ़त तक्बीरे ऊला के साथ मस्जिद में जा कर अदा फ़रमाया करते, जब कभी किसी ख़ातून का