Book Name:Siddique e Akbar Ki Sakhawat
मुसलमानों को खाना खिलाने, सह़री व इफ़्त़ारी करवाने) का एहतिमाम करते हैं । ٭ ह़ुक़ूके़ आ़म्मा का लिह़ाज़ रखते हुवे इख़्लास के साथ क़ुरआन ख़्वानी, नात ख़्वानी और सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त के इन्ए़क़ाद पर ख़र्च करते हैं । ٭ मसाजिद, जामिअ़तुल मदीना, मद्रसतुल मदीना वग़ैरा की तामीर व तरक़्क़ी और रोज़ मर्रा के अख़राजात में ह़िस्सा लेते हैं । ٭ दीनी त़लबा व त़ालिबात पर अपना माल ख़र्च करते हैं । इख़्लास के साथ इस त़रह़ ख़र्च करने वालों को अल्लाह पाक अपने फ़ज़्ल से दुगना बल्कि इस से भी ज़ियादा अ़त़ा फ़रमाएगा । हमें चाहिए कि अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए न सिर्फ़ ख़ुद अपना चन्दा दावते इस्लामी को दें बल्कि दूसरों को भी इस की तरग़ीब दिलाएं ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने सह़ाबा ! हम अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सिद्दीके़ अक्बर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की सख़ावत के वाक़िआ़त सुन रहे थे । आइए ! मज़ीद वाक़िआ़त सुनते हैं ।
रिश्तेदार से जब सख़्त दुख पहुंचा
अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ अपने बाज़ उन रिश्तेदारों का ख़र्च उठाया करते थे जो कि नादार, ग़रीब या मिस्कीन हुवा करते थे, इन्ही ज़रूरत मन्दों में से एक आप के ख़ालाज़ाद भाई, ग़रीब, नादार, मुहाजिर और बदरी सह़ाबी, ह़ज़रते मिस्त़ह़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ भी हैं, अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सिद्दीके़ अक्बर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ उन के अख़राजात उठाते थे । एक बार आप को उन से सख़्त दुख पहुंचा और वोह येह कि उन्हों ने ग़लत़ फ़हमी की वज्ह से आप की प्यारी बेटी, यानी उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते आ़इशा सिद्दीक़ा, त़ाहिरा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا पर तोहमत लगाने वालों का साथ दिया था, तो आप ने उन्हें ख़र्च न देने की क़सम खाई । अल्लाह पाक ने अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सिद्दीके़ अक्बर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को इस नेक काम को जारी रखने के लिए पारह 18, सूरए नूर