Book Name:Allah Pak Say Muhabbat Karnay Walon Kay Waq'eaat
शुरूअ़ कर दिया । शजरए क़ादिरिय्या रज़विय्या ज़ियाइय्या अ़त़्त़ारिय्या पढ़ने की बरकत से उन के घरेलू झगड़े ख़त्म हो गए और "घर अमन का गहवारा" बन गया ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! एक मुसलमान को अपने रब्बे करीम से जितनी मह़ब्बत होनी चाहिये उतनी पूरी मख़्लूक़ में से किसी से भी नहीं होनी चाहिये, इसी में ईमान की अ़लामत व मिठास है । यक़ीनन हम में से हर शख़्स इस बात का दा'वा तो करता है कि मुझे अपने रब्बे करीम से बहुत मह़ब्बत है मगर बद क़िस्मती से हमारे आ'माल इस के बर ख़िलाफ़ हैं, गोया हमारा किरदार ही हमारी आ़दात का वाज़ेह़ इन्कार कर रहा होता है । हमारी अ़मली ह़ालत से तो ऐसा लगता है कि हमें अपने रब्बे करीम से इतनी भी मह़ब्बत नहीं जितनी लोगों से है । किसी अ़क़्लमन्द का कहना है : "करने वाले काम करो, वरना न करने वाले कामों में पड़ जाओगे ।" मगर अफ़्सोस ! आज कल लोगों की एक ता'दाद न करने वाले कामों में ऐसे मसरूफ़ हो गई है कि करने वाले कामों की त़रफ़ तवज्जोह ही न रही । लोग दुन्या की फ़िक्र में ऐसे पड़े कि आख़िरत की फ़िक्र करना ही छोड़ दी, माल की मह़ब्बत में ऐसे गिरिफ़्तार हुवे कि क़ियामत के दिन लिये जाने वाले ह़िसाब से बिल्कुल ही ग़ाफ़िल हो गए, मख़्लूक़ की मह़ब्बत में ऐसे गुम हुवे कि अल्लाह पाक की याद ही दिल से भुला बैठे हैं, गुनाहों की मह़ब्बत में पड़े, तो तौबा से ही गए और आ़लीशान मकानात ता'मीर करने की फ़िक्र सर पर सुवार हुई, तो आख़िरत को संवारने की त़रफ़ तवज्जोह ही न रही । ज़रा सोचिये ! हमें क्या काम करने थे और हम किन कामों में पड़े हुवे हैं ? ग़ौर कीजिये ! कहीं येह वोही दौर तो नहीं है जिस की ख़बर देते हुवे मदनी आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने सदियों पहले ही हमें ख़बरदार फ़रमा दिया था । चुनान्चे,