Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मस्ऊ़द सह़ाबी رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने फ़रमाया : अगर मैं किसी को ह़क़ीर समझ कर उस का मज़ाक़ बनाऊं, तो मुझे डर लगता है कि कहीं अल्लाह पाक मुझे कुत्ता न बना दे ।
(تفسیر صاوی، پ۲۶، الحجرات:۱۱،۵ / ۱۹۹۴, अ़जाइबुल क़ुरआन मअ़ ग़राइबुल क़ुरआन, स. 389, बित्तग़य्युर)
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि अपने आप को दूसरों से अफ़्ज़ल जानना, मुत्तक़ी मुसलमानों को बिला वज्हे शरई़ ह़क़ीर व कमतर समझना या किसी भी त़रह़ इन का मज़ाक़ उड़ाना, किस क़दर हलाकत ख़ेज़ है, लिहाज़ा अगर कोई इस मूज़ी मरज़ में मुब्तला है, तो उसे चाहिये कि होश मन्दी का मुज़ाहरा करते हुवे आ़जिज़ी व इन्केसारी अपनाए, किसी को अफ़्ज़ल व ग़ैर अफ़्ज़ल क़रार देने का इख़्तियार अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के सिपुर्द कर दे, आज तक जितने मुसलमानों को ह़क़ीर समझ कर उन की दिल आज़ारी का गुनाह अपने सर लिया, अगर मुमकिन हो, तो उन्हें तलाश कर के उन से मुआ़फ़ी तलाफ़ी की तरकीब बनाए, साथ साथ बारगाहे इलाही में भी तौबा व इस्तिग़फ़ार बजा ला कर इस आफ़त से छुटकारा पाने के लिये दुआ़ भी करे ।
ख़बरदार ! ख़बरदार ! अगर किसी मुत्तक़ी मुसलमान को ब ज़ाहिर ख़िलाफे़ मुरव्वत काम करता देखे, तो हरगिज़ दिल में बद गुमानी न करे कि इस त़रह़ किसी क़िस्म का फ़ाइदा मिलना तो दूर की बात है, अक्सर शर्मिन्दगी ही उठानी पड़ती है । आइये ! इस सिलसिले में दो सबक़ आमोज़ ह़िकायात सुनती हैं और इ़ब्रत के मदनी फूल चुनती हैं । चुनान्चे,
क्या येह भी मुझ से बेहतर हो सकता है ?
ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम ह़सन बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस क़दर आ़जिज़ी करने वाले थे कि हर फ़र्द को अपने से बेहतर तसव्वुर करते । इस का सबब येह हुवा कि एक दिन दरयाए दजला पर किसी ह़ब्शी को औ़रत के साथ इस त़रह़ शराब नोशी में मुब्तला देखा कि शराब की बोतल उस के सामने थी । उस वक़्त