Fazilat Ka Maiyar Taqwa

Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa

जमाअ़त क़ाइम कर ली, ह़ैरत अंगेज़ त़ौर पर ट्रेन ठहरी रही, नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर हम जूंही सुवार हुवे, ट्रेन चल पड़ी और वोह लड़का उसी बैंच पर बैठा ला परवाई से इधर उधर देखता रहा । इस से मुझे अन्दाज़ा हुवा कि वोह कोई "मजज़ूब" होगा जिस ने हमें नमाज़ पढ़ाने के लिये अपनी रूह़ानी त़ाक़त से ट्रेन को रोक रखा था । (फ़ैज़ाने सुन्नत, स. 440)

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! उ़मूमन देखा गया है कि बड़ी उ़म्र वाली इस्लामी बहन के बजाए अगर कभी किसी कम उ़म्र इस्लामी बहन को कोई ज़िम्मेदारी सौंप दी जाए, मसलन उसे मद्रसे की नाज़िमा बना दिया जाए, मुदर्रिसा, मोअ़ल्लिमा, मुफ़त्तिशा मुक़र्रर कर दिया जाए, ज़ैली ह़ल्क़े, ह़ल्क़ा, अ़लाक़ा, डिवीज़न या काबीना वग़ैरा की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाए, तो आपस में ना इत्तिफ़ाक़ी और लड़ाई, झगड़ा करवाने के लिये शैत़ान येह वस्वसा डालता है कि जब फ़ुलां फ़ुलां बड़ी उ़म्र की इस्लामी बहन इस लाइक़ थी कि उसे ज़िम्मेदार बनाया जाता, तो आख़िर ऐसी क्या वज्ह थी कि एक कम उ़म्र इस्लामी बहन को येह ज़िम्मेदारी दी गई ?

          याद रखिये ! मदनी माह़ोल से दूर करने का येह ज़बरदस्त शैत़ानी वार है । शैत़ान हरगिज़ नहीं चाहता कि हम मदनी माह़ोल में रहते हुवे अपनी आख़िरत का सामान इकठ्ठा करें, वोह तो चाहता है कि बस किसी त़रह़ ग़ीबत व चुग़ली, बद गुमानी और मुसलमानों की दिल आज़ारियों के ज़रीए़ मदनी माह़ोल से दूर कर के गुनाहों में मुब्तला कर दे । हमें उस के वार को नाकाम बनाते हुवे येह ज़ेह्न बनाना होगा कि हर सह़ीह़ुल अ़क़ीदा मुसलमान मुझ से बेहतर है, जिस इस्लामी बहन को भी ज़िम्मेदारी दी जाए, हमें उस की इत़ाअ़त करनी चाहिये क्यूंकि सिर्फ़ तजरिबा कार होना या उ़म्र में ज़ियादा होना ही अफ़्ज़लिय्यत की दलील नहीं बल्कि इस के साथ साथ तक़्वा व परहेज़गारी भी बेह़द ज़रूरी है । मक्की मदनी आक़ा, दो आ़लम के दाता صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ भी उसी को अमीर बनाते थे जो तक़्वा व परहेज़गारी में दूसरों से बेहतर होता ।