Fazilat Ka Maiyar Taqwa

Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa

عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की मजलिस शरीफ़ में ह़ाज़िर होते, तो सह़ाबए किराम رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُم उन्हें आगे बिठाते और उन के लिये जगह ख़ाली कर देते ताकि वोह ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के क़रीब ह़ाज़िर रह कर कलामे मुबारक सुन सकें । एक रोज़ उन्हें ह़ाज़िरी में देर हो गई और जब मजलिस शरीफ़ ख़ूब भर गई उस वक़्त आप तशरीफ़ लाए और क़ाइ़दा येह था कि जो शख़्स ऐसे वक़्त आता और मजलिस में जगह न पाता, तो जहां होता वहीं खड़ा रहता लेकिन ह़ज़रते साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ आए, तो वोह रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के क़रीब बैठने के लिये लोगों को हटाते हुवे येह कहते चले कि "जगह दो जगह" यहां तक कि ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के इतने क़रीब पहुंच गए कि उन के और ह़ुज़ूरे पुरनूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के दरमियान में सिर्फ़ एक शख़्स रह गया । उन्हों ने उस से भी कहा कि जगह दो । उस ने कहा : तुम्हें जगह मिल गई है, इस लिये बैठ जाओ ! ह़ज़रते साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ग़ुस्से में आ कर उस के पीछे बैठ गए । जब दिन ख़ूब रौशन हुवा, तो ह़ज़रते साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने उस का जिस्म दबा कर कहा : कौन ? उस ने कहा : मैं फ़ुलां शख़्स हूं । ह़ज़रते साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने उस की मां का नाम ले कर कहा : फ़ुलांनी का लड़का ! इस पर उस शख़्स ने शर्म से सर झुका लिया क्यूंकि उस ज़माने में ऐसा कलिमा आ़र दिलाने के लिये कहा जाता था, इस पर येह आयत नाज़िल हुई ।

(تفسیرخازن،پ۲۶،الحجرات،تحت الآیۃ:۱۱،۴ / ۱۶۹ملخصاً)

        ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम अह़मद बिन ह़जर मक्की शाफे़ई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस आयत के तह़्त फ़रमाते हैं : इस ह़ुक्मे ख़ुदावन्दी का मक़्सद येह है कि किसी को ह़क़ीर न समझो, हो सकता है वोह अल्लाह पाक के नज़दीक   तुम से बेहतर, अफ़्ज़ल और ज़ियादा मुक़र्रब हो । (الزواجر،الباب الثانی:فی الکبائر الظاہرۃ ،الکبیرۃ الثامنۃ …الخ، ۲  / ۱۱)

          शैख़ुल ह़दीस, ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुल मुस्त़फ़ा आ'ज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : इस ज़माने जो एक फ़ासिक़ाना और सरासर मुजरिमाना रवाज निकल पड़ा है कि "शैख़" और "पठान" वग़ैरा कहलाने वालों का येह दस्तूर बन