Fazilat Ka Maiyar Taqwa

Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa

सब से अफ़्ज़ल व बरतर जब कि अपने इ़लावा क़ौमों या मख़्सूस पेशों से वाबस्ता मुसलमानों को न सिर्फ़ ह़क़ीर व ज़लील जानते हैं बल्कि मौक़अ़ ब मौक़अ़ उन की क़ौमिय्यत या पेशे को तन्क़ीद का निशाना बना कर उन्हें अ़जीबो ग़रीब अल्क़ाबात से भी नवाज़ते हैं, ह़त्ता कि बा'ज़ तो उन के साथ किसी भी क़िस्म का तअ़ल्लुक़ क़ाइम करने, मसलन उन्हें अपने यहां किसी तक़रीब में बुलाने या उन की दा'वत क़बूल करने को बुरा जानते हैं ।

          यक़ीनन ऐसी सोच रखने वाले लोग सख़्त ग़लत़ फ़हमी का शिकार हैं और फ़ज़ीलत का येह मे'यार ख़ुद उन का अपना बनाया हुवा है क्यूंकि फ़ज़ीलत का येह मे'यार न तो क़ुरआने करीम से साबित है और न ही अह़ादीसे मुबारका से बल्कि क़ुरआने करीम व अह़ादीसे रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ में तो बिला वज्हे शरई़ मुसलमानों का मज़ाक़ उड़ाने और बुरे अल्क़ाबात से पुकारने की मुमानअ़त फ़रमाई गई है । चुनान्चे, पारह 26, सूरतुल ह़ुजुरात की आयत नम्बर 11 में इरशादे रब्बानी है :

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا یَسْخَرْ قَوْمٌ مِّنْ قَوْمٍ عَسٰۤى اَنْ یَّكُوْنُوْا خَیْرًا مِّنْهُمْ وَ لَا نِسَآءٌ مِّنْ نِّسَآءٍ عَسٰۤى اَنْ یَّكُنَّ خَیْرًا مِّنْهُنَّۚ-وَ لَا تَلْمِزُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ لَا تَنَابَزُوْا بِالْاَلْقَابِؕ-بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوْقُ بَعْدَ الْاِیْمَانِۚ-وَ مَنْ لَّمْ یَتُبْ فَاُولٰٓىٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ(۱۱)(پ۲۶،الحجرات:۱۱)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ इमान वालो ! मर्द दूसरे मर्दों पर न हंसें, हो सकता है कि वोह उन हंसने वालों से बेहतर हों और न औ़रतें दूसरी औ़रतों पर हंसें, हो सकता है कि वोह उन हंसने वालियों से बेहतर हों और आपस में किसी को त़ा'ना न दो और एक दूसरे के बुरे नाम न रखो, मुसलमान होने के बा'द फ़ासिक़ कहलाना क्या ही बुरा नाम है और जो तौबा न करें, तो वोही ज़ालिम हैं ।

        इस आयते मुक़द्दसा के तह़्त "तफ़्सीरे ख़ाज़िन" में है कि ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھُمَا फ़रमाते हैं : ह़ज़रते साबित बिन कै़स رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ऊंचा सुनते थे, जब वोह सरकारे दो आ़लम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی