Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
मजीद की रौशनी में ऐसे लोग कितने बड़े मुजरिम हैं ! (मज़ीद फ़रमाते हैं) : मुलाह़ज़ा फ़रमाइये कि क़ुरआने मजीद ने येह अह़काम और वई़दें बयान फ़रमाई हैं कि : (1) कोई क़ौम किसी क़ौम का मज़ाक़ न उड़ाए, हो सकता है कि जिन का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं, वोह मज़ाक़ उड़ाने वालों से दुन्या व आख़िरत में बेहतर हों । (2) मुसलमानों के लिये जाइज़ नहीं कि एक दूसरे पर त़ा'ना ज़नी (या'नी मलामत) करें । (3) मुसलमानों पर ह़राम है कि एक दूसरे के लिये बुरे बुरे नाम रखें । (4) जो ऐसा करे, वोह मुसलमान हो कर "फ़ासिक़" है । (5) और जो अपनी इन ह़रकतों से तौबा न करे, वोह "ज़ालिम" है ।
ह़ज़रते सय्यिदुना इबने अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھُمَا ने फ़रमाया : अगर कोई गुनाहगार मुसलमान अपने गुनाह से तौबा कर ले, तो तौबा के बा'द उस को उस गुनाह से आ़र दिलाना भी इसी मुमानअ़त में दाख़िल है । इसी त़रह़ किसी मुसलमान को कुत्ता, गधा, सुवर कह देना भी ममनूअ़ है या किसी मुसलमान को ऐसे नाम या लक़ब से याद करना जिस में उस की बुराई ज़ाहिर होती हो या उस को ना गवार होता हो, येह सारी सूरतें भी इसी मुमानअ़त में दाख़िल हैं ।
(तफ़्सीरे ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, स. 950, पा. 26, अल ह़ुजुरात : 11)
ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मस्ऊ़द सह़ाबी رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने फ़रमाया : अगर मैं किसी को ह़क़ीर समझ कर उस का मज़ाक़ बनाऊं, तो मुझे डर लगता है कि कहीं अल्लाह पाक मुझे कुत्ता न बना दे ।
(تفسیر صاوی، پ۲۶، الحجرات:۱۱،۵ / ۱۹۹۴, अ़जाइबुल क़ुरआन मअ़ ग़राइबुल क़ुरआन, स. 389, बित्तग़य्युर)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अपने आप को दूसरों से अफ़्ज़ल जानना, मुत्तक़ी मुसलमानों को बिला वज्हे शरई़ ह़क़ीर व कमतर समझना या किसी भी त़रह़ इन का मज़ाक़ उड़ाना, किस क़दर हलाकत ख़ेज़ है, लिहाज़ा अगर कोई शख़्स इस मूज़ी मरज़ में मुब्तला है, तो उसे चाहिये कि होश मन्दी का मुज़ाहरा करते हुवे अपने आप को आ़जिज़ी व इन्केसारी का पैकर बनाए, किसी को अफ़्ज़ल व ग़ैर अफ़्ज़ल क़रार देने का इख़्तियार अल्लाह पाक