Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
जाता है । (11) मुत्तक़ी शख़्स के लिये मौत के वक़्त दीदारे इलाही और आख़िरत में नजात की बिशारत (या'नी ख़ुश ख़बरी) दी जाती है । (12) मुत्तक़ी लोग, आतशे दोज़ख़ से मह़फ़ूज़ रहेंगे और उन्हें हमेशा के लिये जन्नत में रहने की सआ़दत नसीब होगी । (मिन्हाजुल आ़बिदीन, स. 144 ता 148, माख़ूज़न व मुल्तक़त़न)
मुत्तक़ी की दुआ़एं क़बूल होती हैं
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जब किसी बन्दे के सीने में तक़्वा व परहेज़गारी की शम्अ़ रौशन हो जाती है, तो अगर्चे वोह काली रंगत वाला ही क्यूं न हो, उस के तो वारे ही नियारे हो जाते हैं, उस के मुंह से निकले हुवे अल्फ़ाज़ इस क़दर तासीर वाले होते हैं कि निकलते ही ह़क़ीक़त का रूप धार लेते हैं, ह़त्ता कि तक़्वा व परहेज़गारी का येह पैकर अगर लक्ड़ी जैसी मा'मूली चीज़ को भी सोना बनाने के लिये बारगाहे इलाही में दरख़ास्त कर दे, तो अल्लाह पाक इस की पुकार को रद्द नहीं फ़रमाता और उस लक्ड़ी को भी सोना बना देता है ताकि लोगों को मा'लूम हो जाए कि येह कोई मा'मूली इन्सान नहीं बल्कि कोई पहुंची हुई हस्ती है । आइये ! इस तअ़ल्लुक़ से एक ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत सुनिये । चुनान्चे,
ह़ज़रते सय्यिदुना दावूद बिन रशीद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मुल्के शाम में दो ह़सीनो जमील इ़बादत गुज़ार नौजवान रहते थे, कसरते इ़बादत और
तक़्वा व परहेज़गारी की वज्ह से उन्हें "सबीह़ और मलीह़" के नाम से पुकारा जाता था । उन्हों ने अपना एक वाक़िआ़ कुछ यूं बयान किया कि एक मरतबा हमें भूक ने बहुत ज़ियादा तंग किया । मैं ने अपने साथी से कहा : आओ ! फ़ुलां सह़रा में चल कर किसी शख़्स को दीने मतीन के कुछ अह़काम सिखा कर अपनी आख़िरत की बेहतरी के लिये कुछ इक़्दाम करें । चुनान्चे, हम दोनों सह़रा की जानिब चल पड़े, वहां हमें (काली रंगत वाला) एक शख़्स मिला जिस के सर पर लक्ड़ियों का गठ्ठा था । हम ने उस से कहा : बताओ ! तुम्हारा रब कौन है ? येह