Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के फ़रमान के मुत़ाबिक़ तक़्वे की सात क़िस्में हैं : (1) कुफ़्र से बचना (2) बद मज़हबी से बचना (3) कबीरा गुनाह से बचना (4) सग़ीरा गुनाह से बचना (5) शुब्हात (या'नी मश्कूक चीज़ों) से परहेज़ करना (6) नफ़्सानी ख़्वाहिशात से बचना (7) अल्लाह पाक से दूर ले जाने वाली हर चीज़ की त़रफ़ तवज्जोह करने से बचना और क़ुरआने अ़ज़ीम इन सातों मर्तबों की त़रफ़ हिदायत देने वाला है ।
(ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, पा. 1, अल बक़रह, तह़्तुल आयत : 2, स. 4, मुलख़्ख़सन)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! उ़मूमन बा'ज़ लोगों में येह बुरी आ़दत होती है कि वोह मुआ़शरे में आ'ला समझे जाने वाले पेशे अपनाने वालों के ख़ूब गुन गाते, उन की ता'रीफ़ों के पुल बांधते और उन की ख़ूब आओ भगत या'नी ख़िदमत करते दिखाई देते हैं मगर अफ़्सोस ! ह़क़ीर व कमतर समझे जाने वाले मगर जाइज़ पेशे इख़्तियार करने वाले मुसलमानों को किसी ख़ात़िर में नहीं लाते बल्कि उन का दिल दुखाते और ख़ूब मज़ाक़ उड़ाते हैं । इसी त़रह़ बा'ज़ लोग ह़राम व नाजाइज़ कामों में मुब्तला होने के बा वुजूद भी अपने आप को सब से अफ़्ज़ल व बरतर जब कि अपने इ़लावा क़ौमों या मख़्सूस पेशों से वाबस्ता मुसलमानों को न सिर्फ़ ह़क़ीर व ज़लील जानते हैं बल्कि मौक़अ़ ब मौक़अ़ उन की क़ौमिय्यत या पेशे को तन्क़ीद का निशाना बना कर उन्हें अ़जीबो ग़रीब अल्क़ाबात से भी नवाज़ते हैं, ह़त्ता कि बा'ज़ तो उन के साथ किसी भी क़िस्म का तअ़ल्लुक़ क़ाइम करने, मसलन उन्हें अपने यहां किसी तक़रीब में बुलाने या उन की दा'वत क़बूल करने को बुरा जानते हैं । यक़ीनन ऐसी सोच रखने वाले लोग सख़्त ग़लत़ फ़हमी का शिकार हैं और फ़ज़ीलत का येह मे'यार ख़ुद उन का अपना बनाया हुवा है क्यूंकि फ़ज़ीलत का येह मे'यार न तो क़ुरआने करीम से साबित है और न ही अह़ादीसे मुबारका से बल्कि क़ुरआने करीम व