Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा ! तक़्वा व परहेज़गारी एक ऐसी ख़ूबी है जिस की बरकत से बन्दा, अल्लाह पाक और रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के नज़दीक फ़ज़ीलत व बुलन्द मर्तबे वाला हो जाता है । अगर हम चाहते हैं कि हमारे अन्दर भी तक़्वा व परहेज़गारी आ जाए, हमें भी अल्लाह पाक और रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की रिज़ा नसीब हो जाए, तो हमें चाहिये कि हम आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो जाएं और सुन्नतों की ख़िदमत के लिये दा'वते इस्लामी का साथ दें । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी दुन्या भर में कमो बेश 104 शो'बाजात में दीने मतीन की ख़िदमत में मसरूफ़ है, इन्ही शो'बाजात में से एक "मजलिसे उ़श्र व अत़राफ़ गांव"
भी है । मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही और उ़श्र की अहम्मिय्यत के पेशे नज़र मुसलमानों में इस अ़ज़ीम माली इ़बादत को अदा करने का शुऊ़र बेदार करने और उन्हें अ़दमे अदाएगी के गुनाह से बचाने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के तह़्त "मजलिसे उ़श्र व अत़राफ़ गांव" का क़ियाम अ़मल में लाया गया है ।
उ़श्र दर ह़क़ीक़त "ज़मीन की ज़कात" है । ज़मीन में जो फ़सलें वग़ैरा होती हैं उस का दसवां (1 / 10) ह़िस्सा और बा'ज़ अवक़ात बीसवां (1 / 20) ह़िस्सा पैदावार की ज़कात फ़र्ज़ होती है । लिहाज़ा उ़श्र के दिनों में हफ़्तावार और दीगर सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त में राहे ख़ुदा में ख़र्च करने के फ़ज़ाइल बयान कर के दा'वते इस्लामी को उ़श्र देने और जम्अ़ करने की तरग़ीब दिलाई जाती है । इस शो'बे के ज़िम्मेदारान उ़श्र की वुसूली के लिये वक़्तन फ़-वक़्तन किसानों, ज़मीनदारों, बाग़ात के मालिकान वग़ैरा से इनफ़िरादी कोशिश के ज़रीए़ राबित़ा करते रहते हैं । "किसान इजतिमाआ़त" का भी इनए़क़ाद किया जाता है, रिसाला "उ़श्र के अह़काम" तक़्सीम कर के उ़श्र देने का ज़ेह्न दिया