Hasanain-e-Karimain ki Shan-o-Azmat

Book Name:Hasanain-e-Karimain ki Shan-o-Azmat

عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! आप के वोह कौन से क़राबत दार हैं जिन से मह़ब्बत करना हम पर वाजिब है ? तो आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : अ़लिय्युल मुर्तज़ा, फ़ात़िमतुज़्ज़हरा (رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھُمَا) और इन के दोनों बेटे (या'नी ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे ह़सन व इमामे ह़ुसैन (رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھُمَا)

  (معجم کبیر ،  باب الحاء،  حسن بن علي بن أبي طالب ، ۳   /   ٤٧، حدیث:۲۶۴۱)

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा अहले बैत رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہُم اَجْمَعِیْن की मह़ब्बत वाजिब व ज़रूरी है । हर मुसलमान के नज़दीक अपनी जानो माल, इ़ज़्ज़तो आबरू, मां-बाप और औलाद से भी ज़ियादा मह़बूब, अहले बैते किराम رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہُم اَجْمَعِیْن होने चाहियें । इन मुबारक हस्तियों की मह़ब्बत, सय्यिदे आलम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की मह़ब्बत है और ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की मह़ब्बत, ईमाने कामिल की निशानी है । चुनान्चे,

          नबिय्ये रह़मत, शफ़ीए़ उम्मत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने आलीशान है : لَا یُؤْمِنُ عَبْدٌحَتّٰی اَکُوْنَ اَحَبَّ اِلَیْہِ مِنْ نَفْسِہٖ कोई बन्दा मोमिने कामिल नहीं हो सकता जब तक कि मुझे अपनी जान से बढ़ कर न चाहे, وَذَاتِیْ اَحَبَّ اِلَیْہِ مِنْ ذَاتِہِ और मेरी ज़ात, उसे अपनी ज़ात से बढ़ कर मह़बूब न हो وَتَکُوْنَ عِتْرتِیْ اَحَبَّ اِلَیْہِ مِنْ عِتْرَتِہِ    और मेरी औलाद उस को अपनी औलाद से ज़ियादा प्यारी न हो, وَاَہْلِیْ اَحَبَّ اِلَیْہِ مِنْ اَہْلِہِ  और मेरे अहले बैत (رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہُم اَجْمَعِیْن) उसे अपने घर वालों से बढ़ कर मह़बूब न हो जाएं ।  (شعب الایمان،  باب فی حب النبی،  ۲   /   ۱۸۹، حدیث: ۱۵۰۵بتصرف  ما)

अहले बैते अत़्हार رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہُم اَجْمَعِیْن के फ़ज़ाइल

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! अहले बैते अत़्हार عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان की शान में अल्लाह करीम पारह 22, सूरतुल अह़ज़ाब की आयत नम्बर 33 में इरशाद फ़रमाता है :

اِنَّمَا یُرِیْدُ اللّٰهُ لِیُذْهِبَ عَنْكُمُ الرِّجْسَ اَهْلَ الْبَیْتِ وَ یُطَهِّرَكُمْ تَطْهِیْرًاۚ(۳۳) (پ 22،  الاحزاب،  33(