Book Name:Tarke Jamat Ki Waeeden
रिजा (या'नी अल्लाह तआला के ख़ौफ़ और उस की रह़मत की उम्मीद) के दरमियान अदा करता हूं । येह सुन कर ह़ज़रते आसिम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने ह़ैरत के साथ पूछा कि ऐ ह़ातिमे असम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ! क्या वाके़ई़ आप हमेशा और हर वक़्त इसी त़रीके़ से नमाज़ पढ़ते हैं ? तो आप ने जवाब दिया कि जी हां ! 30 बरस से मैं हमेशा और हर वक़्त इसी त़रह़ हर नमाज़ अदा करता हूं । (روح البیان، ج۱، ص۳۳)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! देखा आप ने कि हमारे अस्लाफे़ किराम رَحِمَھُمُ اللّٰہُ السَّلَام किस क़दर इख़्लास, तवाज़ोअ़ और ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ के साथ नमाज़ अदा किया करते थे मगर इस के बा वुजूद उन नुफ़ूसे क़ुद्सिय्या की ह़ालत येह थी कि ख़ौफ़ व उम्मीद की कैफ़िय्यत में रहा करते थे कि न जाने हमारी इ़बादत अल्लाह पाक की बारगाह में मक़्बूल भी है या नहीं ! मगर अफ़्सोस ! हमारा ह़ाल येह है कि एक तो मुसलमानों की अक्सरिय्यत नमाज़ों की अदाएगी से ग़ाफ़िल और ह़ुक़ूक़ुल्लाह पामाल करने की त़रफ़ माइल नज़र आती है और जो रहे सहे मुसलमान नमाज़ पढ़ते भी हैं, उन में से न जाने कितनों की नमाज़ें इख़्लास वाली और कितनों की इख़्लास से ख़ाली हैं ? न जाने कितने मुसलमान अपनी नमाज़ों में ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ का ख़याल रखते हैं ? और कितने ही मुसलमान नमाज़ में ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ के बजाए अपने दोस्त, यार, घर बार और कारोबार के ख़यालात रखते हैं ? न जाने कितने नमाज़ी, नमाज़ पढ़ते हुवे सुनन व वाजिबात और नमाज़ के अरकान को पेशे नज़र रखते हैं और कितने ही नमाज़ी, नमाज़ में अपनी दुन्यावी ज़रूरिय्यात, ख़्वाहिशात और अरमान को मद्दे नज़र रखते हैं ?
याद रखिये ! ह़ुक़ूक़ुल्लाह में से नमाज़ इन्तिहाई अहम्मिय्यत की ह़ामिल है जिस का अन्दाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बरोज़े क़ियामत तमाम ह़ुक़ूक़ुल्लाह में सब से पहले इसी के मुतअ़ल्लिक़ सुवाल किया जाएगा ।