Tarke Jamat Ki Waeeden

Book Name:Tarke Jamat Ki Waeeden

٭ "नुज़्हतुल क़ारी" में है : पड़ोसी कौन है ? इस को हर शख़्स अपने उ़र्फ़ और मुआमले से समझता है । (नुज़्हतुल क़ारी, 5 / 568) ٭ ह़ुज्जतुल इस्लाम, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम मुह़म्मद बिन मुह़म्मद बिन मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : पड़ोसी के ह़ुक़ूक़ में से येह भी है कि उसे सलाम करने में पहल करे, उस से त़वील गुफ़्तगू न करे, उस के ह़ालात के बारे में ज़ियादा पूछ गछ न करे, वोह बीमार हो, तो उस की मिज़ाज पुर्सी करे, मुसीबत के वक़्त उस की ग़म ख़्वारी करे और उस का साथ दे, ख़ुशी के मौक़अ़ पर उसे मुबारक बाद दे और उस के साथ ख़ुशी में शिर्कत ज़ाहिर करे, उस की लग़्ज़िशों से दरगुज़र करे, छत से उस के घर में न झांके, उस के घर का रास्ता तंग न करे, वोह अपने घर में जो कुछ ले जा रहा है, उसे देखने की कोशिश न करे, उस के ऐबों पर पर्दा डाले, अगर वोह किसी ह़ादिसे या तक्लीफ़ का शिकार हो, तो फ़ौरी त़ौर पर उस की मदद करे, जब वोह घर में मौजूद न हो, तो उस के घर की ह़िफ़ाज़त से ग़फ़्लत न बरते, उस के ख़िलाफ़ कोई बात न सुने और उस के अहले ख़ाना से निगाहों को पस्त (या'नी नीची) रखे, उस के बच्चों से नर्म गुफ़्तगू करे, उसे जिन दीनी या दुन्यवी उमूर का इ़ल्म न हो, उन के बारे में उस की रहनुमाई करे । (इह़याउल उ़लूम, 2 / 267, मुलख़्ख़सन) ٭ ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ की ख़िदमत में एक शख़्स ने अ़र्ज़ की : मेरा पड़ोसी मुझे अज़िय्यत पहुंचाता है, मुझे गालियां देता है और मुझ पर सख़्ती करता है । फ़रमाया : अगर उस ने तुम्हारे बारे में अल्लाह की ना फ़रमानी की है, तो तुम उस के बारे में अल्लाह की इत़ाअ़त करो । (इह़याउल उ़लूम, 2 / 266, मुलख़्ख़सन) ٭ मन्क़ूल है : फ़क़ीर पड़ोसी क़ियामत के दिन मालदार पड़ोसी का दामन पकड़ कर कहेगा : ऐ मेरे रब ! इस से पूछ, इस ने मुझे अपने ह़ुस्ने सुलूक से क्यूं मह़रूम किया और मुझ पर अपना दरवाज़ा क्यूं बन्द किया ? (इह़याउल उ़लूम, 2 / 267, मुलख़्ख़सन) ٭ एक शख़्स