Book Name:Tarke Jamat Ki Waeeden
बाबुल मदीना की एक इस्लामी बहन को कुछ इस्लामी बहनें नेकी की दा'वत देने के लिये उन के घर जाया करती थीं । उन्हें इस्लामी बहनों के हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ और मदनी दौरे में शिर्कत की दा'वत पेश की जाती मगर वोह सुस्ती के बाइ़स इस सआदत से मह़रूम रहतीं । एक दिन अचानक उन के बेटे की त़बीअ़त ख़राब हो गई । डॊक्टर को दिखाया, तो उस ने अन्देशा ज़ाहिर किया कि शायद अब येह बच्चा उ़म्र भर टांगों के सहारे चल न सके नीज़ इस का दिमाग़ी तवाज़ुन भी ठीक नहीं रहा । येह सुन कर वोह इस्लामी बहन बहुत ग़मगीन हुईं । एक दिन फिर वोही इस्लामी बहनें नेकी की दा'वत के लिये आईं । उन्हों ने नई इस्लामी बहन के चेहरे पर परेशानी के आसार देखे, तो ग़म ख़्वारी करते हुवे पूछा : ख़ैरिय्यत तो है ! आप परेशान दिखाई दे रही हैं ? उन्हों ने सारा माजरा कह सुनाया, तो इस्लामी बहनों ने उन्हें बहुत ह़ौसला दिया और कहा कि आप दा'वते इस्लामी के 12 हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाआत में पाबन्दी से शिर्कत कीजिये और वहां पर अपने बेटे के लिये दुआ भी मांगिये, اِنْ شَآءَ اللہ عَزَّ وَجَلَّ आप का बेटा सिह़ह़तयाब हो जाएगा । चुनान्चे, उस इस्लामी बहन ने 12 इजतिमाआत में शिर्कत की पुख़्ता निय्यत कर ली । जब वोह पहली मरतबा सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शरीक हुईं और जब वहां रिक़्क़त अंगेज़ दुआ हुई, तो उन्हों ने भी अपने रब्बे दावर से अपने लख़्ते जिगर की सिह़ह़तयाबी की गिड़गिड़ा कर दुआ मांगी । इजतिमाअ़ के बा'द जब वोह घर वापस आईं, तो उन्हें अपने बेटे की त़बीअ़त पहले से बेहतर दिखाई दी । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ عَزَّ وَجَلَّ वक़्त गुज़रने के साथ साथ उन का बेटा मुकम्मल त़ौर पर सिह़ह़तयाब हो गया, यूं डॊक्टरों के अन्देशे ग़लत़ साबित हुवे और सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत की बरकत से उन का बेटा चलने, फिरने भी लगा । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ عَزَّ وَجَلَّ अब उन का सारा घराना दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो कर जन्नत की तय्यारी में मसरूफ़ है ।