Tarke Jamat Ki Waeeden

Book Name:Tarke Jamat Ki Waeeden

क़ज़ाए उ़म्री का त़रीक़ा

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! जल्दी जल्दी रब्बे करीम की बारगाह में तौबा कर के आज ही से नमाज़ों की अदाएगी का एहतिमाम शुरूअ़ कर दीजिये और साथ ही साथ आज तक क़ज़ा होने वाली तमाम नमाज़ों को जल्द अज़ जल्द अदा करने की सच्ची निय्यत भी कर लीजिये । क़ज़ा नमाज़ों को किस त़रह़ अदा करना है ? इस के लिये "मल्फ़ूज़ाते आ'ला ह़ज़रत" ह़िस्सा अव्वल, सफ़ह़ा 70 ता 71 से अ़र्ज़ व इरशाद मुलाह़ज़ा फ़रमाइये : बा'ज़ ह़ाज़िरीन ने अ़र्ज़ किया कि ह़ुज़ूर दुन्यवी मकरूहात (या'नी मजबूरियों) ने ऐसा घेरा है कि रोज़ इरादा करता हूं "आज क़ज़ा नमाज़ें अदा करना शुरूअ़ कर दूंगा" मगर नहीं होता ! क्या यूं अदा करूं कि पहले तमाम नमाज़ें फ़ज्र की अदा कर लूं फिर ज़ोहर की फिर और अवक़ात की, तो कोई ह़रज (तो नहीं) है ? (नीज़) मुझे येह भी याद नहीं कि कितनी नमाज़ें क़ज़ा हुई हैं ? ऐसी ह़ालत में क्या करना चाहिये ?

इरशाद : क़ज़ा नमाज़ें जल्द से जल्द अदा करना लाज़िम है, न मा'लूम किस वक़्त मौत आ जाए, क्या मुश्किल है कि एक दिन की बीस रक्अ़तें होती हैं (या'नी फ़ज्र की दो रक्अ़त फ़र्ज़ और ज़ोहर के चार फ़र्ज़ और अ़स्र के चार फ़र्ज़ और मग़रिब के तीन फ़र्ज़ और इ़शा की सात रक्अ़त या'नी चार फ़र्ज़ और तीन वित्र) इन नमाज़ों को सिवाए त़ुलूअ़ व ग़ुरूब व ज़वाल के हर वक़्त अदा कर सकता है और इख़्तियार है कि पहले फ़ज्र की सब नमाज़ें अदा कर ले फिर ज़ोहर फिर अ़स्र फिर मग़रिब फिर इ़शा की या सब नमाज़ें साथ साथ अदा करता जाए और इन का ऐसा ह़िसाब लगाए कि तख़्मीना (या'नी अन्दाज़ा लगाने) में बाक़ी न रह जाएं, ज़ियादा हो जाएं, तो ह़रज नहीं और वोह सब बक़द्रे त़ाक़त रफ़्ता रफ़्ता जल्द अदा कर ले, काहिली न करे, जब तक फ़र्ज़ ज़िम्मे पर बाक़ी रहता है, कोई नफ़्ल क़बूल नहीं किया जाता । निय्यत इन नमाज़ों की इस त़रह़ हो, मसलन सौ बार की फ़ज्र क़ज़ा है, तो हर बार यूं कहे कि "सब से पहले जो फ़ज्र मुझ से क़ज़ा हुई" हर दफ़्आ येही कहे, या'नी जब एक अदा हुई,