Book Name:Seerat e Bibi Khadija tul Kubra
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! उम्मुल मोमिनीन, ज़ौजए रसूले करीम, ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا, ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की सब से पेहली ज़ौजा हैं । एक क़ौल के मुत़ाबिक़ ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم पर सब से पेहले आप ने ही ईमान लाने की सआ़दत ह़ासिल की । आप के फ़ज़ाइलो मनाक़िब बे शुमार हैं । रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم को आप से बहुत मह़ब्बत थी, ह़त्ता कि जब आप का विसाल हो गया, तो कसरत से आप का ज़िक्र फ़रमाते । नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم, आप की सहेलियों का इस क़दर इकराम (यानी उन की इ़ज़्ज़त) फ़रमाते कि जब कभी आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की बारगाह में कोई चीज़ ह़ाज़िर की जाती, तो अक्सर उन की त़रफ़ भेज देते, ह़त्ता कि येही कसरते ज़िक्र और प्यार व मह़ब्बत उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के रश्क का बाइ़स बना । चुनान्चे, ख़ुद फ़रमाती हैं : मैं ने रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की अज़्वाजे पाक में से किसी पर इतनी ग़ैरत नहीं की, जितनी ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا पर की, ह़ालांकि मैं ने उन्हें देखा भी नहीं था लेकिन ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم उन का कसरत से ज़िक्र फ़रमाते थे । (بخارى،كتاب مناقب الانصار،باب تزويج النبى الخ،۲/۵۶۵، حديث:۳۸۱۸)
याद रहे ! यहां ग़ैरत ब माना रश्क है, यानी जिस त़रह़ नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم, ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के विसाल के बाद उन की इतनी तारीफ़ फ़रमाते हैं, ऐ काश ! मेरे इन्तिक़ाल के बाद भी मेरा ज़िक्रे ख़ैर फ़रमा लें । (मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 496, मुलख़्ख़सन)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم न सिर्फ़ ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا का बादे विसाल कसरत से ज़िक्र फ़रमाते बल्कि आप की सहेलियों पर इन्आ़मो इकराम भी फ़रमाया करते थे । चुनान्चे, जब बारगाहे रिसालत में कोई चीज़ पेश की जाती, तो फ़रमाते : इसे फ़ुलां औ़रत के पास ले जाओ क्यूंकि वोह ह़ज़रते ख़दीजा (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا) की सहेली थी, इसे फ़ुलां औ़रत के घर ले जाओ क्यूंकि वोह ह़ज़रते ख़दीजा (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا) से मह़ब्बत करती थी । (الادب المفرد،باب قول المعروف،ص۶۸، حديث:۲۳۲)
रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم बहुत दफ़्आ़ बकरी ज़ब्ह़ फ़रमाते फिर उस के आज़ा काटते फिर वोह ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا की सहेलियों के पास भेज देते । ह़ज़रते आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا फ़रमाती हैं : मैं कभी ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم से केह देती कि गोया ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के सिवा दुन्या में कोई औ़रत ही न थी । तो आप फ़रमाते : वोह ऐसी थीं, वोह ऐसी थीं और उन से मेरी औलाद हुई । (بخارى،كتاب مناقب الانصار،باب تزويج النبى… الخ،۲/۵۶۵، حديث:۳۸۱۸)
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीस शरीफ़ की वज़ाह़त करते हुवे फ़रमाते हैं : (ह़ज़रते आ़इशा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के फ़रमान का मत़लब येह है) कि जब मैं, ह़ुज़ूरे अन्वर (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم) की ज़बाने पाक से उन की बहुत तारीफ़ सुनती, तो जोशे ग़ैरत (रश्क)