Book Name:Seerat e Bibi Khadija tul Kubra
رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के पास आईं और केहने लगीं : मुबारक हो ! मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने आप की दरख़ास्त क़बूल फ़रमा ली है । इस पर ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا ने बहुत ख़ुशी का इज़्हार किया फिर किसी को अपने चचा अ़म्र बिन असद के पास भेजा कि निकाह़ के वक़्त वोह भी मौजूद हों । इधर ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم भी बाज़ चचाओं और दीगर सरदारों के साथ ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के मकान पर तशरीफ़ लाए और निकाह़ फ़रमाया । निकाह़ की येह मुबारक तक़रीब रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के सफ़रे शाम से वापसी के 2 माह 25 दिन बाद हुई ।(मदारिजुन्नुबुव्वत, बाब : दुवुम, दर कफ़ालत अ़ब्दुल मुत़्त़लिब इलख़, 2 / 27) ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا ने रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की ज़ौजिय्यत में आ कर क़ियामत तक के तमाम मोमिनीन की मां यानी "उम्मुल मोमिनीन" होने का शरफ़ ह़ासिल किया । (फै़ज़ाने ख़दीजतुल कुब्रा, स. 18)
निकाह़ के बाद ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا ने ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم से अ़र्ज़ की : अपने चचा से फ़रमाइए कि एक ऊंट ज़ब्ह़ कर के लोगों को खाना खिलाएं । चुनान्चे, लोगों को खाना खिलाने के बाद रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم तशरीफ़ लाए और ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا से बातें फ़रमाईं, इस से अल्लाह पाक ने आप की आंखों को ठन्डक अ़त़ा फ़रमाई । (شرح زرقانى،المقصد الاول،باب تزوجه خديجة،۱/۳۸۹)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
शादियों में होने वाली बेहूदा रस्में
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ग़ौर कीजिए ! रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के मुबारक निकाह़ की येह तक़रीब किस क़दर सादगी के साथ हुई । अफ़्सोस ! फ़ी ज़माना हमारे मुआ़शरे में मंगनी और शादी के मौक़अ़ पर बाज़ नाजाइज़ और बेहूदा रुसूमात इस क़दर रवाज पा गई हैं कि उन के बिग़ैर तक़रीबात को गोया अधूरा समझा जाता है । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرَکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ शादी बियाह की तक़रीबात में होने वाले गुनाहों की निशान देही करते हुवे अपने रिसाले "गाने बाजे की हौलनाकियां" में लिखते हैं : अफ़्सोस ! सद करोड़ अफ़्सोस ! आज कल शादी जैसी सुन्नत बहुत सारे गुनाहों की नज़्र हो चुकी है, बेहूदा रुसूमात इस का लाज़िमी ह़िस्सा बन चुकी हैं, مَعَاذَ اللّٰہ ह़ालात इस क़दर ख़राब हो चुके हैं कि जब तक बहुत सारे ह़राम काम न कर लिए जाएं, उस वक़्त तक शादी की सुन्नत अदा हो ही नहीं सकती, मसलन मंगनी ही की रस्म ले लीजिए, इस में लड़का अपने हाथ से लड़की को अंगूठी पेहनाता है, ह़ालांकि येह ह़राम और दोज़ख़ में ले जाने वाला काम है । शादी में मर्द अपने हाथ मेहंदी से रंगता है, येह भी ह़राम है । मर्दों और औ़रतों की एक साथ दावतें की जाती हैं या कहीं बराए नाम बीच में पर्दा डाल दिया जाता है मगर फिर भी औ़रतों में ग़ैर मर्द घुस कर खाना बांटते, ख़ूब वीडियो फ़िल्में बनाते हैं, ख़ूब फै़शन परस्ती का मुज़ाहरा किया जाता है,