Book Name:Seerat e Bibi Khadija tul Kubra
की त़रह़ ज़ाहिर हो जाता फिर आप अकेला रेहने को पसन्द फ़रमाने लगे, ग़ारे ह़िरा में जाने लगे, मुक़द्दस घर की त़रफ़ लौटने से पेहले वहां कई कई रातें ठेहर कर इ़बादत करते और (इतना अ़र्सा वहां रेहने के लिए) खाने, पीने की चीज़ें साथ ले जाते फिर उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا की त़रफ़ लौटते और वोह इसी त़रह़ खाने का बन्दोबस्त कर दिया करतीं, यहां तक कि आप के पास ह़क़ आ गया जबकि आप ग़ारे ह़िरा में थे, यानी फ़िरिश्ते ने आप की बारगाह में ह़ाज़िर हो कर कहा : पढ़िए ! नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم फ़रमाते हैं : मैं ने कहा : مَا أَنَا بِقَارِئٍ मैं पढ़ने वाला नहीं हूं । उस ने मुझे पकड़ कर बड़े ज़ोर से दबाया । फिर छोड़ते हुवे कहा : पढ़िए ! मैं ने कहा : مَا أَنَا بِقَارِئٍ मैं पढ़ने वाला नहीं हूं । उस ने मुझे पकड़ कर दोबारा बड़े ज़ोर से दबाया । फिर छोड़ दिया और कहा : पढ़िए ! मैं ने कहा : مَا أَنَا بِقَارِئٍ मैं पढ़ने वाला नहीं हूं । उस ने मुझे पकड़ा और फिर दबाया । फिर मुझे छोड़ कर कहा :
اِقْرَاْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِیْ خَلَقَۚ(۱) خَلَقَ الْاِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍۚ(۲) اِقْرَاْ وَ رَبُّكَ الْاَكْرَمُۙ(۳) الَّذِیْ عَلَّمَ بِالْقَلَمِۙ(۴) عَلَّمَ الْاِنْسَانَ مَا لَمْ یَعْلَمْؕ(۵)) پ۳۰،العلق:۱تا۵(
(بخاری ،کتاب بدء الوحی ، باب ۳ ، ۱/۷،حدیث: ۳)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : अपने रब के नाम से पढ़ो जिस ने पैदा किया, इन्सान को ख़ून के लोथड़े से बनाया । पढ़ो ! और तुम्हारा रब ही सब से बड़ा करीम है, जिस ने क़लम से लिखना सिखाया । इन्सान को वोह सिखाया जो वोह न जानता था ।
रसूले अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم वह़ी ले कर इस ह़ालत में वापस हुवे कि दिल मुबारक कांप रहा था । उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के पास पहुंच कर फ़रमाया : زَمِّلُونِى زَمِّلُونِى मुझे चादर ओढ़ा दो, मुझे चादर ओढ़ा दो । उन्हों ने आप को चादर ओढ़ा दी, ह़त्ता कि दिले अक़्दस से डर की कैफ़िय्यत जाती रही । फिर आप ने ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا को सारा वाक़िआ़ बताते हुवे फ़रमाया : मुझे अपनी जान का डर है । उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا ने कहा : ऐसा हरगिज़ न होगा, ब ख़ुदा ! अल्लाह पाक कभी आप को रुस्वा न करेगा क्यूंकि ٭ आप रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करते । ٭ कमज़ोरों का बोझ उठाते । ٭ मोह़ताजों के लिए कमाते । ٭ मेहमान की मेहमान नवाज़ी करते और ٭ राहे ह़क़ में तक्लीफें बरदाश्त करते हैं ।
इस के बाद उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا, आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم को वरक़ा बिन नौफ़ल के पास ले गईं, जो ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के चचाज़ाद भाई थे, इ़ब्रानी ज़बान में लिखाई का काम किया करते थे और जितना अल्लाह पाक को मन्ज़ूर होता, इन्जील को इ़ब्रानी ज़बान में लिखा करते थे, उस वक़्त बूढ़े और बीनाई से मह़रूम थे । इन से ह़ज़रते ख़दीजा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا ने कहा : ऐ चचा के बेटे ! अपने भतीजे की बात सुनिए । वरक़ा बिन नौफ़ल ने कहा : ऐ भतीजे ! आप क्या देखते हैं ? रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने जो देखा था, उन्हें बताया । इस पर वरक़ा ने